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पत्र: फूलचन्द शाहको


सामने कोई रचनात्मक कार्यक्रम होना चाहिए। आन्दोलनके समय हमें इनमें से आवश्यक लोग मिल जायेंगे तथा अन्य लोग स्वेच्छासे इसमें सम्मिलित होते रहेंगे। जबतक आन्दोलन आरम्भ नहीं होता तबतक ये १८ आदमी क्या करेंगे? वे सूत तो कातते ही हैं। जब मैं रचनात्मक कार्यकी बात कहता हूँ तो मेरा तात्पर्य निरन्तर चलनेवाले कार्य से होता है। इन १८ व्यक्तियोंमें तो सब अपना-अपना काम-काज करनेवाले लोग हैं। फिलहाल तो इनके सामने ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे सम्मिलित रूपसे किया जा सके।

चरित्र निर्दोष है या नहीं इसका निर्णय कौन करेगा और उसकी परिभाषा क्या है? आप तो जानते ही हैं कि सत्याग्रह आश्रमका अस्तित्व इसीके लिए है। वहाँ भी निर्दोष चरित्रका प्रमाणपत्र कौन दे सकता है ?

सत्याग्रह और सत्याग्रही तो सूरज और उसकी किरणोंके समान हैं। वे ऐसे नहीं होते कि उन्हें टोकरीसे ढककर, छिपाकर रखा जा सके । सत्याग्रहके अवसर तो मुझे आज भी जहाँ-तहाँ देखने को मिल जाते हैं। किन्तु सत्याग्रही कहाँ हैं? जो हैं सो हैं । वे अपनी तैयारी कर रहे हैं और जब उनमें आत्मविश्वास आ जायेगा तब वे मेरी अथवा किसी अन्यकी अनुमतिकी प्रतीक्षा नहीं करेंगे ।

इतनी चेतावनी देनेके बाद अब मैं कहना चाहूँगा कि आपने जिस वस्तुको खड़ा किया है, उसे बना रहने दें। आपने उस चीजको खड़ा न किया होता तो कोई बात नहीं थी। किन्तु जहाँ हेतु शुद्ध है वहाँ निराशाकी गुंजाइश नहीं है, उसके विनष्ट होनेका भी कारण नहीं है।

कार्यकर्ताओं को किस प्रकार सुसंगठित किया जा सकता है इसका कोई उपाय खोजें । मैंने जो आलोचना की है उसपर पहले तो आप खुद ही विचार करें और तदुपरान्त जो परिवर्तन-परिवर्धन करना आवश्यक जान पड़े वह कर दें।

जब हम मिलेंगे तब इस सम्बन्धमें विस्तारसे चर्चा करेंगे। इस बारेमें यदि कुछ पूछना चाहें तो पूछें।

जो लोग हमपर राजनीतिक कार्य करनेका दबाव डाल रहे हैं, यह दल उनके उस दबावका जवाब नहीं है। किन्तु उनका दृष्टिकोण भी समझने लायक है। आपको या मुझे इस बातमें रुचि न हो यह एक जुदी बात है। वे तो कहते हैं कि राजनीतिक माने जानेवाले सभी मामलोंमें हमें आज भी यथाशक्ति आन्दोलन चलाना चाहिए। सत्याग्रह किया जाये या न किया जाये, किन्तु हमें अपने वर्तमान कष्टोंके बारेमें कमसे-कम अर्जी तो देनी चाहिए। जब भी हमें आपस में मिलनेकी, सभा-सम्मेलन आदिकी सुविधा दी जाये तब हम इकट्ठे बैठकर चर्चा तो करें। और कुछ नहीं तो आपसमें विचार-विमर्श आदि ही करें।

इस विचार सरणीको यों ही नहीं उड़ाया जा सकता। एक दिन हम लोग भी इसी दिशामें सोचा करते थे । आपके इस दलसे उनकी अपेक्षा पूरी नहीं होती । उनके लिए तो आपको कोई सरल-सा मार्ग बताना चाहिए अथवा उन्हें अपना मार्ग