२७५. पत्र : जमनाबहनको
२७ अप्रैल, १९२७
बीमारी घोड़ेकी चालसे आती है और चींटीकी चालसे जाती है । उस दिन तुम सब बहनोंने यदि मेरे लिए फल व अन्य चीजें तैयार करके खिलाने की बजाय मुझसे उपवास कराया होता तो मैं बीमार न पड़ता। मेरे प्रति तुम्हें अपना स्नेह अधिक खिलाकर नहीं बल्कि मुझसे उपवास कराकर जताना चाहिए। जब मैं ज्यादा काम करके आऊँ और खानेको माँगूं तो तुम्हें मुझसे कहना चाहिए -"अभी थोड़ा धीरज रखो, कुछ देर आराम करो। तुम्हारा कामका नशा उतर जाये, उसके बाद मैं तुम्हें थोड़ा-सा दूध और एक नारंगी दूंगी।" ऐसा स्नेहपूर्वक कहा जा सकता है। तुम जानती ही हो कि रसिक और मनुसे में अक्सर ऐसा ही कहता हूँ। मैं ऐसा कहता हूँ इस कारण क्या कोई मुझे क्रूर मानेगा ? मुझे अपनी चौकसी सदा खुद ही क्यों करनी पड़े ? मनुके लिए मैं जो हूँ तुम सभी बहनें मेरे लिए वैसी ही क्यों नहीं हो सकतीं ? अब जब आओ तो इतनी दयामयी बनकर ही आना ।
सभी बहनोंको बापूके आशीर्वाद
[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई
२७६. पत्र : मगनलाल गांधीको
बुधवर [२७ अप्रैल, १९२७ ][१]
तुम्हारा पत्र मिला। गणेश और रामचन्द्र के पत्र तथा उनका उत्तर भी इसके साथ ही भेज रहा हूँ । रामचन्द्रने जो कुछ लिखा है उस सम्बन्ध में यदि तुम कुछ कहना चाहो तो मुझे सूचित करना ।
गाय-भैंसोंसे सम्बन्धित आंकड़े उपयोगी सिद्ध होंगे।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (सी० डब्ल्यू० ८७०१) से ।
सौजन्य : राधाबहन चौधरी
- ↑ पत्रमें उल्लिखित गाय-भैंसोंसे सम्बन्धित आंकडे नवजीवन, ८-५-१९२७ के अंकमें प्रकाशित हुए थे।