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२७७. अस्पृश्यता और अविवेक

महाडसे एक पत्रलेखक लिखते हैं :

आपको यह लिखते हुए मुझे बहुत दुःख होता है कि गत २० मार्चको महाडमें स्पृश्य और अस्पृश्य जातियोंके बीच दंगा हो गया। घटना यों हुई । गत १९ और २० मार्चको कोलाबा जिलेकी दलित जातियोंकी एक परिषद हुई थी । परिषद बहुत सफल रही। परन्तु जब (परिषदके समाप्त होनेपर) लोग उठकर जाने लगे, तब बम्बई समाज सेवा संघ (सोशल सर्विस लीग) के कार्यकर्ता श्री ए० वी० चित्रेने लोगोंसे कहा, आप सब प्यासे हैं और धूप बहुत तेज है, इसलिए आप सब सार्वजनिक जलाशयपर जाकर पानी पी सकते हैं। वहाँ कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने इन लोगोंको जलाशयपर जानेसे रोकनेकी कोशिश की। किन्तु परिषद के अध्यक्ष डा० अम्बेडकरने लोगोंको पानी पिलाने के लिए जलाशयपर ले जाने का निश्चय किया। स्वयं पुलिस इन्स्पेक्टर भी स्थितिको गम्भीरताकी कल्पना नहीं कर पाया; अतः भोड़को जलाशयकी ओर जानेसे रोकनेके बजाय वह भी उसके साथ चला गया। यह जलाशय ब्राह्मणों के मोहल्लेके बीचमें है। चूँकि किसीको पता नहीं था कि अस्पृश्योंकी यह भीड़ जलाशयपर जा रही है; इसलिए कोई गड़बड़ नहीं हुई और सैकड़ों अस्पृश्योंने तालाब में घुसकर 'हर हर महादेव'का घोष करते हुए अपनी प्यास बुझाई। तबतक स्पृश्य लोग वहाँ घटनास्थल पर आ गये । और कोसे इस घटनाको देखते रहे। इसके बाद अस्पृश्योंका जमघट भोजन करने पण्डालमें चला गया । इसके एक घंटे के भीतर ही “गुरव" "गुरव" की जोरकी आवाजोंसे महाडके लोग चौंक उठे और उन्हें बताया गया कि अस्पृश्य लोग वीरेश्वरके मन्दिरम घुसनेका विचार कर रहे हैं।

यह सरासर झूठी अफवाह थी । पर बातकी बातमें कुछ स्पृश्योंका दल हाथों में लाठियाँ लिये हुए मन्दिरमें इकट्ठा हो गया। किन्तु बेचारे अस्पृश्योंका तो मन्दिरमें जाने का विचार ही नहीं था। लेकिन स्पृश्य तो यह देखकर कि कोई भी अस्पृश्य मन्दिरमें घुसनेका प्रयत्न नहीं कर रहा है, क्रोधसे पागल हो उठे। बाजारमें घुसे और राहमें जहाँ कहीं भी कोई अस्पृश्य मिला, उसे पीटने लगे। जितनी भी देर यह मारपीट स्पृश्यों द्वारा होती रही एक भी अस्पृश्यने कोई प्रतिकार नहीं किया। स्पृश्यजातिके कुछ लोगों, जिन्हें अस्पृश्योंसे सहानुभूति थी उन्हें बचाने की कोशिश की । पर क्रोधसे पागल भीड़ उनके रोके न रुकी। वह चमारों और अन्य अस्पृश्योंकी झोंपड़ियोंमें भी घुसी और