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पत्र : मु० अ० अन्सारीको

ताकि उसका मेरे मनपर असर न हो। इन चीजोंके बारेमें लगातार सोचनेके लिए मुझे समाचारपत्र पढ़कर उनसे सूचना प्राप्त करनेकी आवश्यकता नहीं है। इन चीजोंके बारेमें मैं न सोचूँ इसका एकमात्र उपाय यह है कि हिन्दू और मुसलमान निकृष्ट जानवरोंकी तरह आचरण करनेके बजाय मानवोंकी तरह आचरण करें। हममें से वे सब लोग जिन्हें प्रतिदिन पेट भर खानेसे ज्यादा मिलता है, भूखे रहनेवाले लाखों करोड़ों लोगोंका विचार करें और उनके लिए विदेशी कपड़ेका परित्याग करें। उन भूखे लोगोंको प्रोत्साहित करनेके लिए अपने अवकाशके समयमें हर क्षण चरखा चलायें ।

यदि यह सचमुच सही है कि रक्तचापका कारण मानसिक उत्तेजना है तो में गम्भीरतासे दृढ़तापूर्वक कहता हूँ कि इस तनावको दूर करनेका सिर्फ एक ही उपाय है कि मुझे उपवासके उपचारकी हिदायत दी जानी चाहिए। अपने अन्तरतममें में ऐसा महसूस करता हूँ कि लम्बा उपवास ही मेरी बीमारीको पूरी तरह दूर करने में सहायक सिद्ध होगा। क्योंकि पिछले २१ दिनोंके उपवासके[१] दौरान मुझे ऐसा महसूस हुआ कि १० दिनके बाद मैंने बाहरी दुनियाके बारेमें सोचना भी बन्द कर दिया था। उपवाससे अस्थायी मानसिकसमंजसकी दशा आ गई थी। जबतक में खाता रहता हूँ तबतक यदि मुमकिन हो तो भी मस्तिष्क बिना सोचे नहीं रह सकता । परन्तु उपवासके दौरान मस्तिष्क न सोचने एवं चिन्ता न करने में सहयोग देगा । और यदि इन सारी बातोंके बावजूद कि मैं अपने-आप जो ध्यान रख रहा हूँ, असंख्य मित्र डाक्टर जो मुझे मिलने आते हैं, और मेरी परीक्षा करते हैं; नीम हकीम जिनकी राय मैं स्वेच्छासे लेता रहता हूँ, सेवापरायण नस जो मेरी पूरी देख-भाल करती हैं, रक्तचाप कम होनेका नाम नहीं लेता और कमजोरी बनी हुई है तो इस तरह बेकार समय विताने और विक्षोभ उत्पन्न करनेवाली स्थितिको सुधारने या इसका अन्त करनेके लिए मुझे उपवास रखना पड़ेगा, चाहे इसके लिए मुझे बहुतसे मित्रोंको अस्थायी दुःख देनेका खतरा सिरपर मोल लेना पड़े। परन्तु अभी तो चिन्ताका कोई कारण नहीं है । ऐसा लगता है कि रक्तचाप कम हो जायेगा । जब मैं नन्दी आया था, तबके मुकाबले पिछले दो दिनोंसे में ज्यादा ताकत महसूस कर रहा हूँ । पिछले हफ्तेके दौरान अधिकतम रक्तचाप १८८ था। पिछले मंगलवारको १८० था। बीमार पड़ने के बाद रक्तचापमें यह गिरावट पहली बार देखी गई।

इस पहाड़ीकी ऊँचाई ४,८५० फुट है। इसलिए यह ऊटी जितनी ऊँचाई नहीं है; और न यहाँ उतनी सर्दी है। परन्तु फिर भी यहाँ काफी सर्दी है और डाक्टर मेहता समझते हैं कि मुझे इससे ज्यादा ऊँचे स्थानपर नहीं जाना चाहिए। दूसरे डाक्टर यह कहते हैं कि जितना अधिक ऊँचाईवाला स्थान हो, उतना ही अच्छा है...।[२] जब डाक्टरोंकी राय आपसमें न मिलती हो तो बेचारा रोगी क्या कर सकता है ?

 
  1. १७ सितम्बरसे ८ अक्तूबरतक; देखिए खण्ड २५ ।
  2. साधन-सूत्रमें यहाँ कुछ शब्द छूट गये हैं।