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२८५. पत्र: जगजीवनदास नारायणदास मेहताको

नन्दी दुर्ग
३० अप्रैल, १९२७

ट्रस्टके रूपमें जो भी काम हाथमें लो उसे चमका कर दिखाओ । लाठीके कामके बारेमें यदि तुम्हें शंका हो अथवा सँभाल न सकते हो तो उसे छोड़ देना । थोड़ा ही काम अपने जिम्मे लो किन्तु उसे सांगोपांग ठीक करो ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री जगजीवनदास नारायणदास मेहता

अमरेली

गुजराती (जी० एन० ६९) की फोटो-नकलसे ।

२८६. पत्र : सुमन्त मेहताको

३० अप्रैल, १९२७

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र मिला। आपने तो तात्त्विक चर्चा छेड़ी है। वह मुझे अच्छी भी लगती है किन्तु आजकल आप नरसिंह मेहताके प्रदेशमें हैं इसलिए मुझे उनकी प्रभाती याद आती है: "हे कृष्ण, प्रेमरसके पानकी तुलनामें मुझे यह नीरस तात्त्विक चर्चा तुच्छ लगती है।" फिलहाल तो हम दोनोंको रोयशय्यासे जल्दी उठनेमें होड़ लगानी चाहिए। भाई रायचुराको आपकी सेवाका सौभाग्य मिला इसके लिए उनसे मेरा धन्यवाद कहें। शारदाबहनको वन्देमातरम् ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

सौजन्य : नारायण देसाई