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२८७. पत्र : नीमूको

३० अप्रैल, १९२७

चि० नीमू,

अगले वर्ष तुम्हारा विवाह होगा । विवाह एक प्रकारसे नया जन्म ही है । अतः मैं चाहता हूँ कि तुम और रामदास पहलेसे ही इसके लिए तैयारी कर लो । रामदासको लिखनेके बाद मैं तुम्हें यह पत्र लिख रहा हूँ। रामदासके साथ तो काफी समयसे पत्र व्यवहार चल रहा है। रामदासके पत्रका अंश इसके साथ भेज रहा हूँ, उसे पढ़ लेना ।

मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों सेवाके कार्य में अपना जीवन विताओ। रामदास भी यही चाहता है। तुम्हें उसी कार्यसे अपनी आजीविका चलानी चाहिए, जिस तरह कि मगनलाल तथा अन्य बहुतसे लोग चलाते हैं। साथ ही मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों आदर्श दम्पती बनो। इसके लिए तुम्हें आजसे ही तैयारी करनी चाहिए । घरके कामके बाद जो समय बचे उसे तुम खादीके काममें लगाओ। उस कामके तुम्हें भी पैसे मिलेंगे। मैं दो मामलोंमें यही कर रहा हूँ । एक तो किशोरलाल और गोमतीबहन तथा दूसरे ठक्कर और उनकी पत्नीके मामलेमें। किन्तु तुम तो उनसे भी आगे बढ़ सकती हो। तुम्हारे हिस्से जो काम आयेगा वह आसान ही होगा, किन्तु कोशिश करनी चाहिए कि तुम्हें ऐसा लगे कि तुम स्वतन्त्र रूपसे ही कमा रही हो, और तुम कमा सकती हो। मैं तो मानता हूँ कि यह करते रह कर तुम अपनी घर-गृहस्थी चला सकती हो और सन्तान होनेपर उसका पालन-पोषण भी कर सकती हो । गरीब कुटुम्बोंमें तो हजारों दम्पती इस प्रकार कमाई करते हैं। दूदाभाई और दानीबहन, रामजीभाई और गंगाबहनका उदाहरण तो तुम्हारे सामने ही है । हमें भी गरीबीमें ही रहना है और उन्हींके जैसा बनना है। तभी हम ईश्वरको जानने योग्य बन सकेंगे ।

ऐसा बननेके लिए तुम्हें ओटना, पींजना और कातना बहुत अच्छी तरहसे सीख ही लेना चाहिए। इसके साथ-साथ तुम्हें अपने गुजराती भाषाके ज्ञानको बढ़ाना चाहिए तथा कुछ हिसाब-किताब भी सीख लेना चाहिए। इसके लिए तुम्हें जो सुविधा चाहिए वह मिल सकती है। तुम्हें अपना स्वास्थ्य भी सुधारना चाहिए और संस्कृत आदि तो सीखनी ही है।

इस सम्बन्ध में विचार करना और तुम्हें जो लगे सो बेझिझक लिखना । जैसे लड़की अपनी माँसे निःसंकोच कह सकती है अथवा दो मित्र एक-दूसरेके सामने अपना दिल खोल देते हैं वैसे ही तुम भी मुझे लिखना । मुझे क्या अच्छा लगता है, इस

  1. साधन-सूत्रके अनुसार ।