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२८९. पत्र : रामदास गांधीको

[३० अप्रैल,१९२७ ][१]

चि० रामदास,

तुम्हारा पत्र मिला । तुमने विद्यार्थियों की सेवा आरम्भ कर दी है,यह बहुत अच्छा किया।

खुशालभाईका पत्र बहुत सुन्दर है । तुमने उन्हें क्या उत्तर दिया, लिखना । सेवामें स्वार्थ तो आ ही जाता है । जो सच्चे हृदयसे सेवा करता है उसे भगवान् चना-चबैना देता ही है । और सीखनेके लिए तो उसमें अपार अवकाश है । सच्चा सेवक कभी भूखों नहीं मरा । नलाल तथा अन्य लोगोंने कुछ गँवाया नहीं है बल्कि उन्होंने अपने जीवनको सुधारा और सफल बनाया है।

यदि किसी वस्तुके सम्बन्धमें पूरी जानकारी न हो तो यह कमी चेष्टा करके दूर की जा सकती है। अनुभवसे सारा ज्ञान स्वतः मिल जाता है। जिस इमारतकी नींव चरित्र और नैतिक जीवनपर रखी गई हो उसे सुन्दरताके साथ चिननेमें कोई कठिनाई ही नहीं होती।

गुजराती (जी० एन० ६८५६) की फोटो-नकलसे ।

२९०. पत्र : लाजपतरायको[२]

नन्दी हिल्स
३० अप्रैल, १९२७

प्रिय लालाजी,

आपका पत्र तथा ट्रस्टके कागज मुझे मिल गए । इस निश्चयपर आपको बधाई। इस घनसे तो मेरा विचार है, काम नहीं चल सकेगा। अभी अधिक धनकी आवश्यकता होगी। उसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।

भवदीय,
मो० क० गांधी

लाला लाजपतराय : एक जीवनी

  1. महादेव देसाईंकी हस्तलिखित डायरी में इस पत्रके अन्तिम अनुच्छेदको इसी तारीखमें दिया है ।
  2. मूल पत्र अंग्रेजीमें लिखा गया था, जो उपलब्ध नहीं है। देखिए. “पत्र : लाजपतरायको ", १-५-१९२७ भी ।