२९१. पत्र : मीराबहनको
शनिवार [ ३० अप्रैल, १९२७][१]
आज कुछ लीखनेका तो है नहिं । सिर्फ इसीलिये लीखता हुं कि तुमे पता चले कि मुझको तुमारे लीये आजकल कुछ चिंता रहती है। ईश्वर तुमको सुरक्षित रखेगा। क्या यह खत समझा जाता है ?
बापूके आशीर्वाद
सौजन्य : मीराबहन
२९२. पत्र : लाजपत रायको[२]
१ मई, १९२७
उपरोक्त पत्र[३] गत रात्रिको लिखा गया। मैंने आपको अपने पूरे विचारोंसे परिचित नहीं किया। मेरी बधाईमें भी कुछ आलोचनाका अंश था । वह अब लिखता हूँ । विचार अच्छा है, परन्तु कार्यप्रणाली दोषपूर्ण है। आपकी पत्नी तथा बच्चोंको ट्रस्टी नहीं होना चाहिए। आपके ट्रस्टी वह होने चाहिए, जो आपके आदर्शोंसे पूर्णतः सहमत हों, और जो उनकी पूर्तिके लिए भारीसे-भारी कष्ट सहन करने को तैयार हों। यदि आपकी धर्मपत्नी, पुत्री तथा पुत्रमें ये गुण हैं, तो आपके सम्बन्धी होते हुए भी ट्रस्टी रह सकते हैं। अब मैंने पूर्ण सत्य कह दिया है और सर्वशक्तिमान परमात्माको धन्यवाद है कि उसने मुझे सत्य-भाषणकी शक्ति प्रदान की। इसके बिना मैं अपने उस कर्त्तव्य पालनमें असमर्थ होता जो एक मित्रको करना चाहिए ।
भवदीय,
मो० क० गांधी