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२९३. तार : मीराबहनको

२ मई, १९२७

तुम्हारा तार मिला । नन्दी आशासे अधिक माफिक आई है। कल की परीक्षामें रक्तचाप सामान्य निकला। दो बार लम्बी दूरीतक पैदल घूमता हूँ । रोज रोज अधिक ताकत आती जा रही है और.... लिख[१] रहा हूँ । सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२२३) की फोटो-नकलसे ।

सौजन्य : मीराबहन

२९४. पत्र : मीराबहनको

दुबारा नहीं पढ़ा

नन्दी हिल्स
२ मई, १९२७

चि० मौरा,

मैंने तुम्हें एक पोस्टकार्ड [२] हिन्दी में लिखा था, सिर्फ यह बताने के लिए कि मुझे हर समय तुम्हारा खयाल रहता है और यह जानने के लिए कि तुम मेरी हिन्दी पढ़ और समझ सकती हो या नहीं। घबराना मत । तुम्हें हमेशा हिन्दी में पत्र लिखनेका मेरा इरादा नहीं है। लेकिन मेरी हिन्दी तुम समझ सको तो मैं कभी-कभी तुम्हें अतिरिक्त पत्र हिन्दी में जरूर लिखना चाहता हूँ वह भी अगर तुम्हें यह विचार पसन्द हो तो, अन्यथा नहीं ।

अब रही बात तुम्हारे उद्विग्न कर देनेवाले तारके बारेमें। पता नहीं मैंने अपने पत्रोंमें ऐसा क्या लिख दिया, जिससे तुम्हें यह तार देना पड़ा। तुम्हें कल्पना भी नहीं हो सकती कि मैंने फिर कितनी शक्ति प्राप्त कर ली है। मैंने इस सप्ताह 'नवजीवन' के लिए चार लेख लिखे हैं । 'यंग इंडिया' के लिए पिछले सप्ताह तीन लेख लिखे थे । असल में इन पत्रोंका काम अब लगभग सदाकी भाँति ही कर रहा हूँ। और स्नेह-पत्र भी काफी लिख लेता हूँ ।

मगर यह सब कलकी डाक्टरी परीक्षाके परिणामकी तुलनामें कुछ भी नहीं है। रक्तचाप १८८ से घटकर १५५ रह गया है और मेरी उम्र के व्यक्तिके लिए १५५

  1. मूलमें यहाँ कुछ शब्द पढ़े नहीं जा सके।
  2. देखिए “पत्र : मोरावइनको ", ३०-४-१९२७ ।