२९५. पत्र : मणिबहन पटेलको
नन्दी दुर्ग मोनवार, २ मई, १९२७
तुम्हारा पत्र मिला। बापू लिखते हैं कि तुम दुबली हो गई हो। ऐसा क्यों हुआ ? शरीर तो सशक्त और तेजस्वी होना चाहिए। आदर्श कन्याको तो सभी तरहसे वीर होना चाहिए । यदि तुम्हारा कराची जाना नहीं हुआ तो मेरा विचार चम्पावतीके बजाय तुम्हें दिल्ली भेजनेका है । वहाँ बहुत लड़कियाँ हैं और बहुत काम है । दिल्लीकी आबोहवा तो अच्छी है ही। आजकलमें कराचीसे तार मिलना चाहिए । बहनोंमें से यदि किसीको चोरका डर बना ही रहता हो तो मुझे सूचित करना । राधाको कितनी चोट आई ? क्या वह डर गई थी ? फिलहाल तो उसे अलगसे पत्र लिखनेका समय नहीं है ।
बापूके आशीर्वाद
[ गुजरातीसे ]
बापुना पत्रो - ४ : मणिबहेन पटेलने
२९६. पत्र : आश्रमकी बहनोंको
मोनवार, वैशाख सुदी २ [३ मई, १९२७][१]
मेरे पास अब बहुत-सा हाथ-कागज आ गया है, इसलिए यद्यपि तुमने जितना चाहा था उससे इसका आकार कुछ छोटा है फिर भी मैं मानता हूँ तुम यह हाथ-कागज ही पसन्द करोगी । धर्म तो कपड़ेके बारेमें ही है, क्योंकि उससे भूखे मरनेवालोंकी रोजी चलती है। ऐसा कागज बनानेवाले थोड़े ही हैं। मगर इस देश में जो चीज अच्छी बनती हो, वह जबतक मिले तबतक हमें चाहिए कि हम उसीको लें और काममें लायें ।
तुम डाकखर्चके लिए पैसे अलग निकाल लेती हो, यह बहुत अच्छा है। वह रकम छोटी-सी भले हो, फिर भी उसका बाकायदा हिसाब रखकर तुममें से जो इस तरह बहीखाता रखना सीख सके वह सीख ले।
- ↑ आश्रममें चोरोंके आनेके उल्लेखसे ।