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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


[ पुनश्च :]

वसुमतीबहनसे पत्र लिखनेको कहना |

[ गुजराती से ]

बापुना पत्रो- ४ : मणिबहेन पटेलने

२९८. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

४ मई, १९२७

बहुत दिनों से तुम्हें पत्र लिखने की बात सोच रहा था, किन्तु उसपर आज अमल कर पा रहा हूँ | ऐसा तो शायद कोई दिन नहीं जाता जबकि तुम्हारा नाम न लिया हो अथवा तुम्हें याद न किया हो ।

मेरे विषय में तुम्हारी यह इच्छा थी कि मैं पंचगनी में रहूँ, पर वह असम्भव था। मेरे कार्यके लिए इस प्रान्तमें रहना ही आवश्यक था। तबीयत सुधरते ही यहाँका कार्य पूरा कर लूंगा; कुछ नये ढंगसे हो, यह सम्भव है।

[ गुजरातीसे ]

बापुनी प्रसादी

२९९. घोर अमानुषिकता

पाठक 'नवजीवन 'से उद्धृत एक समाचार अन्यत्र देख सकते हैं, जिसमें एक डाक्टरकी काठियावाड़ के एक गाँव में रहनेवाले दलित वर्गके एक सदस्यकी मरणासन्न पत्नी के प्रति जान-बूझकर दिखाई गई लज्जास्पद अमानुषिकताका हवाला है। श्रीयुत अमृतलाल ठक्करने इस मामले की तफसील लिख भेजी थी। उन्होंने उक्त घटनासे सम्बन्धित स्थान और व्यक्तियोंके नाम इस आशंकासे नहीं दिये हैं कि उनके देने से कहीं वह डाक्टर उस अन्त्यज स्कूलमास्टरको और अधिक न सताये । पर मैं तो चाहता हूँ कि वे नाम प्रकाशित कर दिये जाने चाहिए। ऐसा समय भी जरूर आयेगा जब हमें दलित वर्गोंके लोगोंको और ज्यादा कष्ट और अत्याचार सहनेकी हिम्मत करनेको प्रोत्साहित करना होगा। उन्हें तो पहले ही से इतने अधिक कष्ट हैं कि कुछ और कष्ट बढ़ जायें तो वह उन्हें कुछ खास महसूस नहीं होगा। ऐसे अत्याचारोंके सम्बन्ध में जिनकी सच्चाईका पता नहीं लगाया जा सकता या जिनकी तहतक नहीं पहुँचा जा सकता, लोकमत जाग्रत नहीं किया जा सकता। मैं बम्बईकी मेडिकल कौंसिलके नियम नहीं जानता, पर अन्य स्थानोंपर ऐसे डाक्टरका नाम, जो पहले फीस लिये बिना मरोजकी चिकित्सा करने से इनकार करता है, कौंसिलके सदस्योंकी सूची में से काट दिया जाता है तथा अन्य रीतिसे भी उसके विरुद्ध अनुशासन की कार्रवाई की जाती है। निःसन्देह फीस तो वसूल ही करनी है, परन्तु मरीजोंकी ठीक तरहसे देखभाल करना डाक्टरका सबसे पहला कर्त्तव्य है। परन्तु यदि ऊपर बताई गई बातें ठीक हैं तो वास्तविक अमानुषिकता तो इसमें यह है कि डाक्टरने अस्पृश्योंके मुहल्लेमें जाने, मरीजको स्वयं देखने और अपने हाथसे थर्मामीटर लगानेसे इनकार किया । और यदि अस्पृश्यताका सिद्धान्त किसी भी परिस्थिति में संसारमें कभी लागू