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३०४. पत्र : देवचन्द पारेखको

नन्दी हिल्स, मैसूर।
५ मई, १९२७

भाईश्री ५ देवचन्दभाई,

खाट तो अब भी पकड़े हुए हैं, किन्तु थोड़ा-बहुत काम कर सकता हूँ । वहाँके कामके सम्बन्ध में सोचता भी रहता हूँ ।

ऐसा लगता है कि काठियावाड़के खादीके कार्य के लिए यदि नीचे लिखे अनुसार एक समिति बना दी जाये तो अच्छा होगा : देवचन्दभाई प्रधान हरख चन्द जयसुखलाल मन्त्री

फूलचन्द, मणिलाल कोठारी, जीवरामभाई कच्छवाला, नारणदास और रामदास ।

मैंने नारणदासभाईके बारेमें कुछ प्रयत्न शुरू किया है; दूसरोंसे अभी नहीं पूछा है। यदि यह आपको मंजूर हो तो इस मामलेको तुरन्त निपटा दें।

आपको पैसेकी तंगी है। मैं तो लिख [१] ही चुका था कि यदि आश्रम में पैसोंकी व्यवस्था हो सकती हो तो वह रकम भाई फूलचन्दको भेज दी जाये । किन्तु मुझे आज ही पत्र मिला है कि आश्रम में पैसे हैं ही नहीं, इसलिए वे नहीं भेज सकेंगे । यदि ले सकें तो आप वल्लभभाईसे प्रामाणिक कर्ज ले सकते हैं। किन्तु लें तभी जब आपको पैसा वापस कर सकनेका विश्वास हो । यदि मैं वहाँ होता तो पैसोंकी कोई-न-कोई व्यवस्था कर ही देता। किन्तु आजकल में तो लाचार हूँ ।

बापूके वन्देमातरम्

गुजराती (जी० एन० ५७२०) की फोटो-नकलसे ।

  1. देखिए "पत्र : छगनलाल गांधीको”. २६-४-१९२७ और "पत्र: फूलचन्द शाहको ", २७-४-१९२७।