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पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

शोधकार्यके लिए नियत परिस्थितियों में ऐसे ईमानदार एवं परिश्रमी लोगोंको, जिनकी अनुसन्धानमें रुचि है और जिन्होंने उपयुक्त शिक्षा प्राप्त की है, जो सहायता दी जा रही है, उसका में विरोध नहीं कर सकता। मुझे यह भी उल्लेख कर देना चाहिए कि जिस कथनको मेरा कथन बतलाया गया है, वह मैंने एक आयुर्वेदिक महाविद्यालय- का शिलान्यास करते हुए व्यक्त किया था । यदि में आयुर्वेदिक कार्यके लिए कोई सहायता देने के विरुद्ध होता, तो मैंने कलकत्तामें आयुर्वेदिक महाविद्यालयका शिलान्यास करना, दिल्लीमें तिब्बिया कालेज खोलना और अभी हाल ही में अहमदनगरमें एक आयुर्वेदिक अस्पताल खोलना निश्चय ही अस्वीकार कर दिया होता ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ७-५-१९२७

३०७. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

७ मई, १९२७

प्रिय भाई,

ईश्वरको धन्यवाद है कि तनाव शास्त्री द्वारा दक्षिण आफ्रिका जानेका फैसला करनेके सम्बन्ध में। खत्म हो गया । आपको पत्र लिखते हुए खुशी होती है। आप बहुत अच्छे मुहूर्तमें जा रहे हैं। ईश्वर करे कि आपका पथ निर्विघ्न बना रहे और ईश्वर आपको आवश्यक शक्ति तथा विवेक दे ।

एन्ड्रयूजका सबसे हालका पत्र साथ में है। यदि आप ठीक समझें तो मैं चाहूँगा कि आप उन्हें समुद्री तारसे सूचित कर दें कि आप शीघ्र ही उनके पास पहुँच रहे हैं। या फिर आप दो शब्द मुझे लिख दें; और चाहें तो मैं तार दे दूंगा ।

वाइसरायका पत्र सचमुच ही बहुत अच्छा है। यदि आप कभी समय निकाल सकें तो कृपया एक बार फिर [ नन्दी ] हिल्स पर चढ़िए ।

आपका, मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीके कागजात ( पत्र-व्यवहार सं० ४७७)।

सौजन्य : नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया