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३०८. पत्र : मीराबहनको

७ मई, १९२७

चि० मीरा

तुम्हारा मधुर तार और पत्र मिला। यह तो तुम्हारा पतन हुआ ।[१] लेकिन मैं घबराया नहीं हूँ। मुझे मालूम है कि तुम गिरी हो तो अवश्य ही फिर उठोगी। जब उन्नत विचारोंकी मानसिक स्थिति हमारे जीवन में स्थायी बन जाती है, तब हमें उससे ऊपर और किसी चीजकी जरूरत नहीं रहती। इसीलिए में बैरोमीटरमें उतारकी खबरको सुनने के लिए तैयार था । जब आना आवश्यक समझो चली आना। इतना ही कहना है कि पूरी तरह सोचे-विचारे बिना कुछ न करना ।

अब मैं लगभग अपनी स्वाभाविक चालसे टहलता हूँ । चार दिन पहले मैं जितना घूमता था, अब उससे दुगुना घूमता हूँ । प्रगति बराबर हो रही है। अब हर बार यह बात सुननेकी आशा न रखना कि में प्रगति कर रहा हूँ। जब भी प्रगतिमें कोई बाधा पड़ेगी, तुम्हें बता दूंगा।

भगवानके लिए अखबारी खबरोंपर भरोसा न करो। तुम्हें सीवी जानकारी मिल जाती है ।

सस्नेह,

तुम्हारा, बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२२५) से ।

सौजन्य : मीराबहन

३०९. पत्र : हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

नन्दी हिल्स
शनिवार [७ मई, १९२७][२]

प्रिय भगिनी,

आपके दोनों खत मील गये हैं। अनिलके वियोगका दुःख मैं समझ सकता हुं। परंतु उसी दुःखसे आध्यात्मिक शक्ति बढ़ानी चाहिये । शोक करने से शक्तिका ह्रास होता है। दुःखका सदुपयोग करने से शक्ति में वृद्धि होती है। सदुपयोग सेवा भावनाको बढ़ाने से ही हो सकता है। इसलीये मेरी प्रार्थना है कि प्रत्येक क्षण सेवा-

  1. मोराबहनने इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार दिया है : "बुद्धिसे समझ केनेपर भी हृदयने मेरा साथ छोड़ दिया था। "
  2. निखिलको दुर्बलताके उल्लेखसे; देखिए "पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको ”, ५-५-१९२७ ।