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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपको चर्मालय तथा दुग्धालयको योजनाएँ तो शहरोंके लिए हैं। देहातके लिए तो जानवरोंके पोषण और संवर्धन विषयक कुछ सामान्य सुझावोंकी अपेक्षा कुछ ज्यादा व्यावहारिक उपाय बताने की जरूरत है। मेरा सुझाव है कि प्रत्येक गाँव में एक साँड़ रखा जाये । उसका खर्च सार्वजनिक चन्देसे दिया जाये। साँड़का उपयोग करनेवाले भी थोड़ा खर्च दें । यह कार्य हर जगह हो सकता है। इससे गायों और बैलोंकी नस्ल सुधर जायेगो । क्या आप इसी प्रकारके कुछ अन्य उपाय बतायेंगे ?

सवाल ठीक है। मैंने जो कुछ लिखा उसका अर्थ यह नहीं था कि भैंसको बिलकुल छोड़ दिया जाये, बल्कि यह था कि उसे स्वराज्य दे दिया जाये। मैं यह कहना चाहता था कि गायोंको तो हमने अपने उपयोगके लिए कुटुम्बमें स्थान दे दिया है, इसलिए उनकी रक्षा करना हमारा धर्म हो गया है, किन्तु यदि हम गायोंकी तरह भैंसोंको भी पालेंगे तो न गायोंकी रक्षा कर पायेंगे, न भैंसों की ।

कोंकणको उपर्युक्त मिसालसे मेरे इस मतमें कोई फर्क नहीं पड़ता। फिलहाल जितनी भैंसे हमारे पास हैं उनका उपयोग तो करना ही होगा। अतः हम उनका उपयोग कोंकण जैसे प्रदेश में करते रह सकते हैं ।

लेकिन हमारा कर्त्तव्य तो स्पष्ट है। जहां हम गायोंसे अपना काम चला सकते हों वहां हमें भैंसोंकी नई झंझट मोल नहीं लेनी चाहिए। हमें गायके दूधका प्रचार करना चाहिए । बम्बईमें भैंसोंके प्रचारकी अथवा भैंसोंके दूबकी जरूरत नहीं होनी चाहिए। गायका शुद्ध दूध सस्ता मिल सके, इस बातका प्रयत्न बड़े पैमानेपर किया जाना चाहिए। गायोंको दूध देनेको क्षमता बहुत बढ़ाई जा सकती है और उसमें घीकी मात्रा भी बढ़ाई जा सकती है। यूरोपमें और खासकर डेन्मार्क में इन सब बातोंकी काफी खोजबीन हुई है और उसका एक पृथक् शास्त्र ही बन गया है। वहाँको गायें हमारो भैंसोंको अपेक्षा कहीं अधिक अच्छा दूध देती हैं। वैद्योंसे सुना है कि गायके दूधमें कितने ही रोगनाशक और आरोग्य-वर्धक गुण हैं। ये गुण भैसके दूधमें न तो होते हैं और न किसी प्रकार पैदा ही किये जा सकते हैं। धर्मज्ञ पुरुषोंके मुंहसे सुना है कि गायका दूध सात्विक होता है, जबकि भैसका दूध तामसिक होता है। मैं खुद इन बातोंको नहीं जानता। हाँ, खोज कर रहा हूँ। अभी तो पाठकोंके सामने सुनी हुई बातें ही पेश कर रहा हूँ। यह सब लिखनेका उद्देश्य यही दिखाना है कि हमें भैंसके दूधसे जो कुछ मिलता है वह सव बल्कि उससे भी अधिक गायके दूबसे मिलता है और उसे और भी बढ़ाया जा सकता है। यदि यह बात ठीक हो तो मनुष्यके हितकी दृष्टिसे मनुष्यको भैंसके पालनकी उपाधि मोल लेनेकी कोई जरूरत नहीं है । और भैंसके हितको दृष्टिसे विचार करें तो हमें उसे बाँध कर गुलामोमें क्यों रखना चाहिए ? अथवा इसी बातको सौम्य शब्दों में कहना चाहें तो उससे हम सेवा क्यों लें ?

धर्मकी दृष्टि से और सारे समाजके लाभकी दृष्टिसे की जा रही इस चर्चामं इस बातका विचार नहीं किया जा सकता कि कुछ लोगोंको भैंससे आर्थिक लाभ