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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खातिर नहीं, बल्कि मेरे उन आदशोंकी खातिर, जिस हदतक में उनका पालन करता हूँ, आई हो। तुम अब तो जान गई हो कि मैंने जो आदर्श रखे हैं, उनपर मैं कहाँतक चलता हूँ। अब यह तुम्हारा काम है कि उन आदर्शोपर मनन करो और जितनी पूर्णतासे उनका पालन करनेकी शक्ति ईश्वरने मुझे दी है तुम उनका पालन उससे अधिक पूर्णतासे करो । जो भी स्त्री या पुरुष ऐसा करेगा वही मेरा प्रथम उत्तराधिकारी और प्रतिनिधि होगा। मैं चाहता हूँ कि तुम प्रथम रहो। इसका और नहीं तो यही कारण है कि तुमने दूरसे मेरा अध्ययन करके मुझे अपनाया है। काम करते हुए भगवान हमें निकट ला दे तो अच्छा ही है, लेकिन समान उद्देश्यकी पूर्तिमें वह हमें अलग-अलग रखे तो भी ठीक है।

मगर यह तो पूर्ण बनने की सलाह हुई । इसे सुन और समझ लेने के बाद तुम्हें स्वतन्त्रता है कि जो चाहो सो करो। अगर तुम्हारा मन बसमें न रहे तो जरूर आ जाओ और यह न समझो कि में नाखुश हो जाऊँगा । मैं नाराज तब होऊँगा, जब तुम अपने प्रति हिंसा करोगी और बीमार पड़ोगी ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजो (सी० डब्ल्यू० ५२२६) से ।

सौजन्य : मीराबहन

३१३. पत्र : गंगारामको

नन्दी हिल्स (मैसूर राज्य)
८ मई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मुझे बहुत देरसे मिला और तब मेरे पास इतना समय नहीं बचा था कि में उत्तर देता और वह आपके पास समयसे पहुँच जाता। बम्बईकी यात्रा असम्भव थी; क्योंकि डाक्टरोंका आदेश आपके आदेशके समान ही अनुल्लंघनीय था। परन्तु चूंकि समयकी दृष्टि से डाक्टरी आदेश पहले मिल चुका था, इसलिए उसका पालन अनिवार्य था ।

आपके मुझे सदा पढ़ाते रहने की बातके प्रति अब मैं वास्तव में निराश होने लगा हूँ। आपने वायदा किया था कि यदि में आपको एक मानचित्र और अतीतकी सफलताओं एवं असफलताओं का ब्यौरा भेज दूं, तो आप मेरे आश्रमको स्वर्ग में बदल देंगे। मैंने आपको सारी सूचना दे दी है। मैंने आपके पास अपना सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति भेजा। परन्तु आश्रमस्थल अभी उस जादूके स्पर्शकी प्रतीक्षा कर रहा है। आपके द्वारा दी जा सकनेवाली जनसाधारणकी गरीबीके सम्बन्ध में कोई भी सूचना, आपके व्यक्तिगत अनुभवोंपर आधारित तो हो नहीं सकती। क्योंकि आप मुझे जो भी कुछ