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पत्र : गंगारामको

बता सकते हैं, वह सब दूसरोंसे सुनी सुनाई बातें होंगी। आपने गरीबीका स्वाद नहीं जाना है। एक लखपति, एक सफल इन्जीनियर और एक व्यापारी उसे क्या सिखा सकता है, जिसने गरीबीका स्वाद और कड़वाहट दोनोंका अनुभव किया है और जो गरीबीके सम्बन्धमें जन साधारणके सीधे सम्पर्क में रहा है। तीसरी बात - परन्तु अभी मुझे तीसरी बातके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहना है ।

आपने मेरे स्वास्थ्यका सम्बन्ध वायदेको, जो मैंने आपसे या किसी औरसे कभी नहीं किया, तोड़नेके साथ जोड़ा है; यह आपके अनुरूप ही है. - उसी तरह जैसे कि आपने मुझ जैसे गरीब आदमीको सब तरहके सब्जबाग दिखाये थे और असंख्य वादे किये थे। मुझे ऐसा कुछ याद नहीं कि मैंने आपसे यह वायदा किया हो कि मैं राजनीतिमें कभी भाग नहीं लूंगा। और वैसे, अभीतक मैंने राजनीतिमें भाग नहीं लिया है। परन्तु मैं यह प्रतिज्ञा अवश्य करता हूँ कि यदि अनुकूल अवसर आये, तो मैं राजनीतिमें कूदनेमें संकोच नहीं करूंगा। इस वक्त तो मैं चरखेके पास बैठे रहने एवं ईश्वरकी स्तुति करते रहने में ही सन्तोष मानता हूँ; जिससे ईश्वर मुझे इतनी शक्ति देता है कि मैं भारतके उस जनसाधारणकी थोड़ी-बहुत सेवा कर सकूं, जिसके शोषणमें आप इतना प्रमुख हिस्सा ले रहे हैं- यह हिस्सा चाहे आप अनजाने ही लेते हों, परन्तु ले तो रहे हैं।

जबतक आप पश्चिममें हैं, मैं आपसे इस पत्रके उत्तरकी आशा नहीं करता । जब आप भारत आयें तो आपके वायदोंकी अगली किश्त पाकर मुझे प्रसन्नता होगी । इतना मैं जानता ही हूँ कि आप पहले की तरह उन्हें भी तोड़ते जायेंगे और उस भेड़ियेकी तरह, जो मेमनेको गालियाँ देने लगा था, मेरे अभिमुख होकर मुझपर ही वे वायदे, जो मैंने कभी नहीं किये होंगे, तोड़नेका आरोप लगायेंगे । मैं ये सारे अपशब्द प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लूंगा, क्योंकि आपको सारे विश्वके ज्ञानका दर्प भले ही हो, मैं आपके मानसिक सदगुणोंका बहुत आदर करता हूँ ।

हृदयसे आपका,

सर गंगाराम, नाइट, सी० आई० ई०, एम० वी० सी०,

द्वारा सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास

बम्बई

अंग्रेजी (एस० एन० १२५७७) की फोटो-नकलसे ।


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