३१४. पत्र : रेवरेंड जॉन हेन्स होम्सको
आश्रम
साबरमती [१]
८ मई, १९२७
आपके ४ अप्रैलके पत्रके लिए धन्यवाद ।
मैं ध्यान रखूँगा कि जब अन्तरिम खण्ड प्रकाशित हो जाता है तब भारतसे बाहरके आदेश प्राप्त करनेके कोई प्रयत्न न किये जायें।
मैं कुछ कह नहीं सकता कि 'आत्मकथा' कब समाप्त होगी। मुझे दिन-प्रतिदिनका हाल लिखना है । मैंने कोई निश्चित योजना नहीं बनाई है । उस सप्ताह लिखे जानेवाले परिच्छेदको लिखनेके लिए नियत समयमें अतीतकी जो भी घटनाएँ मेरे मनमें आती जाती हैं, मैं उन्हें प्रति सप्ताह लिखता हूँ। आजकल मैं १९०३-४ की घटनाओंका ब्यौरा दे रहा हूँ और मुझे १९१४ के बीच तकके दक्षिण आफ्रिकाके संघर्षमय कालका और भारतके भी वैसे ही संघर्षमय १२ सालोंका ब्यौरा इसमें पूरा करना है। इसलिए यदि इन परिच्छेदोंकी अमेरिका या यूरोपमें सचमुच कोई मांग हो तो उन्हें यहाँकी तरह खण्डोंमें प्रकाशित करना ठीक रहेगा । यदि मैकमिलन कम्पनीका 'आत्मकथा' को किश्तोंमें प्रकाशित करनेका विचार न हो, तो बेशक ऐसा मानकर कि पश्चिममें इन परिच्छेदोंको पढ़नेकी लालसा किसीकी प्रेरणावश नहीं, अपितु स्वाभाविक है, भारतके बाहर इन खण्डोंके विक्रयको रोक पाना असम्भव होगा।
हृदयसे आपका,
१२, पार्क एवेन्यू और ३४ वीं स्ट्रीट
अंग्रेजी (एस० एन० १३९७१) की फोटो-नकलसे ।
- ↑ स्थायी पता ।