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पत्र : शापुरजी सकलातवालाको

नेताओंका समान रूपसे आज्ञापालन भी नहीं करते। विभिन्न प्रान्तोंके नेता एक नीतिका अनुसरण नहीं करते । इन परिस्थितियों में अखिल भारतीय संघका अस्तित्व केवल कागजों में ही सम्भव है । इसलिए मैं यह समझता हूँ कि अहमदाबादके लिए अपने आपको इस संघसे सम्बन्धित मानना घातक सिद्ध होगा। मेरा अपना विश्वास है कि अहमदाबाद इससे दूर रहकर या जैसा कि मैं इसे कहता हूँ आत्मसंयमसे काम लेकर भारतके सभी मजदूरोंकी सेवा कर रहा है। यदि यह स्वयंको निर्दोष बनाने में सफल हो सकता है तो वह निश्चितरूपसे शेष भारतके लिए आदर्श होगा और उसकी सफलताका व्यापक प्रभाव होगा । परन्तु मुझे यह स्वीकार करनेमें कोई झिझक नहीं है कि अभी निकट भविष्य में सफलताकी कोई आशा नहीं है । कार्यकर्ताओं की शक्तिकी सदा सिर उठाती रहनेवाली विध्वंसक शक्तियोंसे संघर्ष करने में बुरी तरह कसौटी होती रहती है ? हिन्दू-मुसलमानोंके बीच तनाव है एवं हिन्दुओंमें ही छुआछूतका प्रश्न है। इसमें मजदूरोंके बीच व्याप्त महान अज्ञान और स्वार्थको भी जोड़ दें तो यह मेरे लिए आश्चर्य की बात है कि अहमदाबादने गत १२ वर्षोंके सुसंगठित अस्तित्वके दौरान इतनी उन्नति की है । ऐसी हालतमें यदि अहमदाबाद अलग रहता है तो स्वार्थवश नहीं अपितु सारे श्रमिक वर्गके हितके लिए ।

नीतिके सम्बन्धमें भी एक शब्द कहना है । यह पूंजीपतियोंके विरोधमें नहीं है। अब धारणा यह है कि मजदूरोंके लिए पूंजीसे उचित भाग ले लिया जाए। यह कार्य पूँजीको हानि पहुँचाए बिना मजदूरों से ही सुधारकी भावना द्वारा एवं उनकी आत्मचेतना द्वारा किया जाए। और इसमें श्रमिक वर्ग से इतर नेताओंकी चतुराई एवं दाँव-पेंचकी कलाका उपयोग न किया जाए; बल्कि श्रमिकोंको इस प्रकार शिक्षित किया जाये कि वे अपने नेतृत्व में स्वावलम्बी एवं आत्मनिर्भर संघका निर्माण एवं विकास कर सकें। इसका प्रत्यक्ष ध्येय राजनीतिक तो लेशमात्र भी नहीं है। इसका स्पष्ट उद्देश्य है, आन्तरिक सुधार एवं आन्तरिक शक्तिका विकास । यदि कभी यह विकास पूर्णताको प्राप्त हो जाए तो उसका परोक्ष परिणाम सहज ही में आशातीत राजनीतिक महत्त्वका होगा। इसलिए मेरा मजदूरोंका शोषण करने अथवा किसी स्पष्ट राजनीतिक उद्देश्य लिए उनका संगठन करनेका रत्तीभर भी विचार नहीं है। जब यह संगठन स्वतन्त्र इकाईके रूपमें स्थिर हो जायेगा तब यह अपने आपमें प्राथमिक महत्त्वकी राजनीतिक शक्ति बन जायेगा। मेरे विचारमें मजदूरोंको राजनीतिज्ञोंके दाँव-पेचके मोहरे कभी नहीं बनना चाहिए। केवल अपने बलबूतेपर कार्यक्षेत्र में प्रभाव जमाना चाहिए । यह सब कुछ केवल तभी हो सकता है जब मैं अहमदाबादके कार्यकर्त्ताओंके समझदारीसे युक्त एवं स्वेछासे अर्पित सहयोगको प्राप्त कर सकूं, और अन्तमें हमारा यह सामूहिक प्रयत्न सफल हो जाए। यह मेरा स्वप्न है। मैं इसे हृदय में संजोये हुए हूँ, क्योंकि इससे मुझे जितनी चाहिए उतनी सान्त्वना मिल जाती है। आप इस बातको स्वीकार करेंगे कि यह नीति, जिसकी रूपरेखा मैंने तैयार की है, मेरे अहिंसापर आधारित अटूट विश्वासका प्रत्यक्ष परिणाम है । यह साराका सारा विचार भ्रम हो सकता है, परन्तु जबतक मैं इसे भ्रमरूपमें न देखकर केवल जीवनदायनी शक्तिके रूपमें देखता हूँ, तबतक