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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह मेरे लिए इतना ही वास्तविक है जितना कि यह जीवन । अब आप समझ गए होंगे कि आपके सुझावके अनुसार यदि मैं समर्थ होऊँ तो भी स्वयं इकट्ठे किए घनको विभाजित करनेका आपका अनुरोध क्यों स्वीकार नहीं कर सकता । वैसे में आपको यह बता दूं कि मुझमें यह क्षमता भी नहीं है। धन-संग्रह खादी-कार्यके लिए किया गया है और यदि में इस धनका कोई अन्य उपयोग करूँ, तो यह मेरे द्वारा पराये धनका दण्डनीय दुरुपयोग होगा।

इस पत्रसे आपको खुशी नहीं होगी। यदि ऐसा हो तो मुझे इसका दुःख होगा । परन्तु में आपको सत्यकी खोजमें अपना सहयोगी समझता हूँ और यदि मैंने आपको ठीक तरहसे समझा है, तो इसमें मुझे ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई देता कि मेरा पूर्ण एवं केवल सत्य कहना आपके लिए अत्यधिक प्रसन्नताका विषय न हो सके । हम सभीका अपनी धारणाओंमें मतैक्य नहीं हो सकता, परन्तु अपने साथियोंके कार्यों एवं धारणाओं के प्रति हम सब वही सम्मान जरूर दिखा सकते हैं, जिसकी अपने कार्यों एवं धारणाओंके प्रति दूसरोंसे आशा रखते हैं।

हृदयसे आपका, मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० १२४९१) की फोटो-नकलसे ।

३१८. पत्र : ईजाबेल बमलेटको

आश्रम
साबरमती [१]
१० मई, १९२७

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला - उसके लिए धन्यवाद ।

मेरे लिए जीवनकी समस्या इतनी सरल नहीं है जैसी कि आपको लगती है। मुझे विश्वास है कि आप यह नहीं चाहेंगी कि अपने निर्णयोंके सम्बन्धमें मुझे दलीलें देनी पड़ें। आप ईश्वरके मार्ग-दर्शनपर विश्वास करती हैं। मेरा भी ऐसा ही विश्वास है। ईश्वर जैसा मार्ग-दर्शन करेगा, मैं वैसा ही चलूंगा ।

यदि आप चाहें तो मैं बिना आपका नाम दिए आपके पत्रकी मुख्य विषय-वस्तुको 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें एक लेखके तौरपर [२] मूल रूपमें दे दूं। 'यंग इंडिया' का

  1. स्थायो पता ।
  2. देखिए "टिप्पणियाँ ", १२-५-१९२७ का उपशीर्षक "अत्यन्त मितव्ययी " ।