पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/३६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३३१
टिप्पणियाँ

कहना कि पश्चिममें ग्राम्य-जीवनके विनाशसे क्या पश्चिमको या सामान्य रूपमें मानव- जातिको कोई लाभ हुआ है, काफी जल्दी कुछ कह देना होगा। दूसरी बात यह जो ज्यादा महत्त्वकी है कि यदि यह मान भी लें कि पश्चिमके नये जीवनसे मानव जातिका कल्याण ही होगा, तो भी हमें एक बात समझकर चलना चाहिए कि पश्चिममें तो जिन ग्रामीणोंके गृह-उद्योग नष्ट किये गये उन्हें तुरन्त ही दूसरा धन्धा मिल गया और इसलिए उनको कुछ तो काम जुटा दिया गया, लेकिन यहां उन लोगों में बहुत थोड़ेसे लोगोंको ही कोई दूसरा काम मिला है, जिनकी रोजी धान-कुटाईकी मिलोंने छीन ली है और उनमें से अधिकांश तो बेकार और दरिद्र ही हो गये हैं । पाठक जल्दबाजी में यह नतीजा भी न निकाल लें कि हाथ-कताईका यह आन्दोलन सभी प्रकारकी मशीनोंपर अविवेकपूर्वक चोट करता है । इस आन्दोलनका उद्देश्य तो केवल ऐसी शक्तिचालित मशीनोंका स्थान लेना है जो भूखों मरनेवाले करोड़ों लोगोंके नैतिक और आर्थिक हितोंको हानि पहुँचाती है। सच्ची बात तो यह है कि हम पश्चिमके इस इन्द्रजालसे तथा पहलेसे लिखे इस हानिकर साहित्यसे जो हर सप्ताह हमारे पास ढेरों भेज दिया जाता है, हृदसे ज्यादा सम्मोहित हो गये हैं । हम इस बातको भूल जाते हैं कि यह जरूरी नहीं है कि जो बात कुछ परिस्थितियों के कारण पश्चिमके लिए पूरी तरहसे फायदेमन्द हो, वही उनसे भिन्न परिस्थितियों में भी फायदेमन्द ही हो और बहुवा बिलकुल ही विपरीत पूर्वकी परिस्थितियों में भी फायदे- मन्द ही हो । कर-मुक्त व्यापारकी नीति इंग्लैंडके लिए भले ही फायदेमन्द साबित हुई हो; पर उसी नीतिपर यदि जर्मनीमें अमल किया जाता तो वह निःसन्देह जर्मनीको तबाह कर देती । जर्मनीकी समृद्धि तो इसलिए हुई कि उसके विचारकोंने गुलामोंकी तरह इंग्लैंडका अनुकरण करनेके बजाय अपने देशकी खास परिस्थितियोंको ध्यानमें रखते हुए अपनी अर्थ-नीति ऐसी बनाई जो उनके देशके लिए अनुकूल थी । और ज्योंही इंग्लैंड और जर्मनी द्वारा शोषित देश सँभल जायेंगे और अपना शोषण नहीं होने देंगे, त्योंही इन दोनों देशोंको अपनी अर्थ-नीति बदलनी पड़ेगी, क्योंकि इन दोनों देशोंकी सभ्यता दूसरे देशोंके शोषणपर आधारित है। हमें याद रखना चाहिए कि यदि हम इस तरह किसी देशका शोषण करना भी चाहें तो आज हममें वैसा करनेकी शक्ति नहीं है। इसलिए यदि हमें एक स्वतन्त्र राष्ट्रके रूपमें जीना है तो हमें अपनी अर्थ-नीति और स्थिति ऐसी बना लेनी चाहिए जो हमारे विकासके अनुकूल हो ।

अत्यन्त मितव्ययी

मेरी एक महिला मित्रने जो उसी समय में बीमार पड़ गई थीं जब में काम करने में असमर्थ हो गया था मेरे प्रति सहानुभूति प्रकट करनेके लिए और स्वयं सहानुभूति चाहते हुए अपने पत्रमें लिखा है :

मेरे पास तत्त्व-चिन्तनके लिए समय था और जबसे मेरा बोलना बन्द हुआ है, तबसे में एक ही विचारपर चिन्तन कर रही हूँ। मैंने यह पाया