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३३१. पत्र : आर० बी० ग्रेगको

नन्दी हिल्स
१३ मई, १९२७

प्रिय गोविन्द,

मुझे आपका टाइप किया हुआ पत्र मिला। टाइप किये हुए पत्रोंको पढ़ना तो निस्सन्देह आसान है, फिर भी मुझे हाथसे लिखे पत्रोंका मोह है। बहरहाल इसका यह अभिप्राय नहीं है कि आप मुझे अपने हाथसे ही पत्र लिखें। आपके टाइप किये हुए पत्र भी मुझे हस्तलिखित पत्रोंके समान ही प्रिय हैं। आजकल खुद मुझे ज्यादातर आशुलिपि और पपर निर्भर रहना पड़ता है।

विटामिनोंपर लिखी पुस्तक मुझे अभी नहीं मिली। यदि आपने मुझे पुस्तक और लेखकका नाम बताया होता तो मैं इसे बंगलोरसे मँगवानेका प्रयास करता । बंगलोरमें पुस्तकोंकी बड़ी अच्छी दुकानें हैं।

मैं खादीपर आपकी पाण्डुलिपिकी प्रतीक्षा करूंगा। मैं अब उस सिद्धान्तकी चर्चा नहीं करूंगा जिसकी रूपरेखा आपने अपने पत्र में प्रस्तुत की है। बादामोंका मैंने दो प्रकारसे प्रयोग किया। पहले मैंने उन्हें भूना और चक्कीसे पीस कर लुगदी बनाई और मक्खनके रूपमें उन्हें खाया। दूसरे मैंने उन्हें रात भर पानीमें भिगोये रखा, छिलका उतार कर और तब बहुत बारीक पीसकर पानी में मिलाकर उसका दूध बना लिया। इस दूधको उबाल कर पिया । यह भी मुझे हजम नहीं हुआ । यह बात अबसे आठ या नौ वर्ष पहले पेचिश हो जानेके बाद की है। जबसे मैंने बकरीके दूधका प्रयोग करना शुरू किया है, मुझे उस प्रयोगको फिर दोहरानेका साहस नहीं हुआ। यदि मेरे पास और कोई कार्य न हो तो मैं प्रसन्नतापूर्वक अपनी जिम्मेदारीपर यह प्रयोग करूँगा और कुशल निरीक्षणमें दूसरे कार्यों के बावजूद भी इस प्रयोगको कर सकता हूँ ।

सबको प्यार सहित,

हृदयसे आपका,

आर० बी० ग्रेग
कोटगढ़

अंग्रेजी (एस० एन० १४१२२) की फोटो-नकलसे ।