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पत्र : जेठालालको

हैं कि तुम वहाँ आओ तो भले ही एक महीना लें। शर्मके कारण अथवा तुम्हें वहां ले जाने लिए अर्थात् हमपर कोई उपकार करनेके खातिर वे ऐसा करते हों तो मैंने लिख दिया है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है । और तारसे जवाब माँगा है । जहाँ खास जरूरत हो वहीं जाना है। यही शोभा देता है। हमें कोई जल्दी तो नहीं है। इस बीच सोची हुई चीजोंको पक्का करती रहो।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजराती से ]

बापुना पत्रो - ४ : मणिबहेन पटेलने

३३३. पत्र : जेठालालको

नन्दी दुर्ग, मैसूर
वैशाख सुदी १२ [ १३ मई, १९२७] [१]

भाईश्री ५ जेठालाल,

आपका पत्र मिला। धीरज रखने से आपको अपने प्रयत्नमें सफलता मिलेगी। इस युगमें ऐसे प्रयत्नोंका फल तुरन्त ही नहीं मिलता। परन्तु आगेसे इस नियमका पालन तो आपको करना ही चाहिए कि कोई भी प्रतिज्ञा हो, एक बार उसे लिया कि फिर उसका पूर्ण पालन करना ही चाहिए। प्रतिज्ञाका पालन करने तथा सुरक्षित रहनेके लिए जितने दुर्ग बनाना जरूरी हो उतने बनाएँ। उनमें से एक आवश्यक और प्रारम्भिक दुर्ग तो यह है कि आप दोनों को प्रतिज्ञा-कालमें एक दूसरेसे अलग रहना चाहिए और चाहे जो हो एकान्तका सेवन नहीं करना चाहिए। यदि आपमें प्रतिज्ञा लेनेकी शक्ति न हो या ऐसा करनेकी इच्छा न हो, तो प्रतिज्ञा मत लीजिए । किन्तु प्रतिज्ञा लेनेके बाद आवश्यक शर्तोंका पालन जरूर करना चाहिए ।

पण्डित सातवेलकरकी ब्रह्मचर्य सम्बन्धी पुस्तक पढ़ जाना । उनका पता है - औंध, जिला सतारा। यह पुस्तक आश्रममें भी आ गई है। वहाँ ले लेकर भी पढ़ सकते हैं ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती (जी० एन० १३५६) की फोटो-नकलसे।

  1. वर्षका निर्धारण पाठके आधारपर किया गया है।