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३३४. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

नन्दी हिल्स
१४ मई, १९२७

प्रिय मोतीलालजी,

मुझे बोलकर ही लिखवाना होगा। स्वयं अपने हाथों नियमित रूपसे लिखने में बहुत अधिक थकावट हो जाती है, और देरतक बैठ पाना सम्भव नहीं है। बहरहाल इसका यह अभिप्राय नहीं कि मैं अपेक्षाकृत सशक्त नहीं होता जा रहा हूँ, परन्तु शक्ति बहुत धीरे-धीरे आ रही है। जिस पत्र-व्यवहारपर में ध्यान देना चाहता हूँ, उसे मैं बकाया नहीं रखना चाहता ।

मैं आपके पहले पत्रका उपहारकी वस्तुके रूपमें आदर करता हूँ। उससे आपका बड़प्पन और अच्छाई प्रकट होती है।

आप अपने बच्चोंके लिये जी रहे हैं। मुझे उनसे स्पृहा है। परन्तु कृष्णाका [१] विवाह जवाहरके विवाह जैसा नहीं होना चाहिए। वह इतने सादे ढंगसे होना चाहिए, जैसा स्वरूपका [२] हुआ था। नहीं तो मुझे कुर्कीके वारंटके लिये आवेदन देना ही पड़ेगा । या फिर यदि ठोक लगा तो मुझे कृष्णासे सांठगांठ करनी पड़ेगी ।

मैंने जनताके लिए छपी रिपोर्ट आदिसे अन्ततक पढ़ी है। अब मैंने गोपनीय रिपोर्ट [३]भी पढ़ ली है। दोनों जवाहरलालके अनुरूप हैं। जवाहरने विदेशोंमें प्रचार सम्बन्धी जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, उसकी में सराहना करता हूँ। परन्तु किसी तरह भी सही, मैं अब भी अनुभव करता हूँ कि हमारा रास्ता अलग है। मेरा विचार है कि हमें निश्चित सीमासे परे यूरोपका समर्थन नहीं मिलेगा, क्योंकि आखिरकार यूरोपके अधिकतर देश हमारे शोषणमें हिस्सेदार हैं। और यदि मेरी धारणा सही है कि हमें प्रत्येक आकार प्रकारके शोषणका प्रतिरोध अवश्य करना है, तो अपने संघर्षके अन्तिम दौरमें हम यूरोपकी सहानुभूतिको कायम नहीं रख सकेंगे। बहरहाल इस समय मेरे इस दृष्टिकोणका केवल सैद्धान्तिक महत्त्व है। आप कांग्रेस निधिके बारेमें जैसा चाहें वैसा मत दे सकते हैं।

जवाहरलालके अध्यक्षता करने का सुझाव मेरे निकट दुनिवार प्रलोभन है। परन्तु मैं सोचता हूँ कि क्या वर्तमान वातावरणमें उसपर उत्तरदायित्व लाद देना उपयुक्त होगा? मुझे यह प्रशस्त नहीं लगता है। सारा अनुशासन समाप्त हो गया है। साम्प्रदायिकता चरम सीमापर है। जालसाजीकी सब जगह जीत हो रही है। अच्छे और सच्चे लोगोंके लिये कांग्रेसमें अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखना कठिन हो गया है। जवाहरका

  1. मोतीलाल नेहरूकी पुत्रियाँ ।
  2. मोतीलाल नेहरूकी पुत्रियाँ ।
  3. "दलित राष्ट्र परिषद् " के कार्योंके सम्बन्ध में; देखिए "पत्र : जवाहरलाल नेहरूको" २५-५-१९२७ ।