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पत्र : डा० बी० एस० मुंजेको

समय केवल कांग्रेस संस्थाको सन्तोषजनक ढंगसे शुद्ध रखने में ही खप जायेगा और वह खिन्न हो जायेगा । आपका पत्र आनेतक मेरा इस वर्षके अध्यक्षपदके चुनाव में हस्तक्षेप करनेका कोई विचार नहीं था। मेरा मन तो अब भी वैसा ही कहता है। परन्तु यह भी हो सकता है कि सम्पर्क न रहनेसे में स्थितिको बहुत अधिक अवसादपूर्ण मान रहा होऊँ । आपको ज्यादा मालूम है और यह सोचकर कि आप बम्बईमें बुद्धिसे, और मैं समझता हूँ, हृदयसे भी, काम लेंगे, स्थितिको प्रत्यक्ष रूपमें जान जायेंगे और मेरा पथप्रदर्शन करेंगे। और तब भी कुछ करनेके लिये पर्याप्त समय बच रहेगा । मैं जवाहर द्वारा कृष्णाको भेजी हुई गोपनीय रिपोर्टकी प्रति और उसके पत्रका पहला पृष्ठ वापस कर रहा हूँ। मुझे सकलातवालासे सम्बन्धित कागजात अभी मिले हैं। मैं उन्हें समय मिलनेपर पढ़ूँगा ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२५७६) की फोटो-नकलसे ।

३३५. पत्र : डा० बी० एस० मुंजेको

नन्दी हिल्स
१४ मई, १९२७

प्रिय डा० मुंजे,

मैं आपके भाषणकी प्रतिलिपिकी प्रतीक्षा कर रहा था। अब मुझे यह प्रतिलिपि आपके व्याख्यात्मक पत्र सहित मिल गई है। उन दोनोंके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ ।

आचार्य गिडवानीने मुझे पत्र लिखकर आपके भाषण की प्रतिलिपि पानेके लिये तैयार कर रखा था। तबतक मैंने आपका भाषण पढ़ा नहीं था; परन्तु उन्होंने मुझे बताया कि आपने मुझपर अस्पृश्यताके पक्षमें ऐसा विचार रखनेका आरोप लगाया है जैसा विचार न कभी मेरा रहा और न कभी मैंने ऐसा विचार व्यक्त ही किया। जब आचार्य गिडवानीने मुझसे यह कहा, तब मैंने उन्हें लिखा कि यदि आपने ऐसा किया है, तो उससे मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि आपके जीवन-दर्शनके अनुसार विरोधीको किसी भी साधनसे परास्त किया जा सकता है। अब मैंने आपका भाषण पढ़ लिया है। मैं देखता हूँ कि इस भाषणसे आचार्य गिडवानीके मतका अनुमोदन होता है। मैं समझता हूँ, आपको यह बताना अनावश्यक है कि आपने जिस दृष्टिकोणका मुझपर आरोप लगाया है, वह मेरा दृष्टिकोण नहीं है। क्योंकि मैं समझता हूँ, आप इस बातको नहीं जानते कि मैंने कई बार घोषणा की है कि जिस रूपमें अस्पृष्यता आजकल प्रचलित है वह हिन्दू धर्मका अंग नहीं है। और यदि मुझे ऐसा विश्वास हो जाये कि वह हिन्दू धर्मका अंग है तो मैं हिन्दू धर्मको छोड़ दूंगा । लेकिन इस तरह स्पष्ट रूपसे उलटा अर्थ लगाकर मेरा मत पेश करनेसे हमारी मित्रतामें कोई अन्तर