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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं आयेगा। क्योंकि यद्यपि मैं आपके जीवन-दर्शनको गलत समझता हूँ, तो भी देश- प्रेम हम दोनोंको एक सूत्रमें बांधने के लिये काफी है। मैं आशा करता हूँ कि किसी दिन आपको अपने इस मतके अनुकूल बना लूंगा कि विरोधीसे भी अच्छा एवं न्यायपूर्ण व्यवहार करना अच्छी नीति है। जब मैं आपके दृष्टिकोणमें परिवर्तन ले आऊँगा, तो यह कार्य शुद्धि आन्दोलनमें मेरा योगदान होगा।

आप अपने भाषणके सम्बन्धमें मेरी राय जानना चाहते हैं। मैं आपकी स्पष्ट- वादिता और निर्भीकताके लिए आपको बधाई देता हूँ। परन्तु आपके भाषणका विषय मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा। आपके भाषणमें इस्लामकी ओरसे प्रभावपूर्ण और प्रगल्भ तर्क प्रस्तुत किये गये हैं। परन्तु वे इस्लामके सर्वश्रेष्ठ भाष्यकारके तर्क नहीं हैं, वरन् जिस रूपमें आप स्वयं इस्लामको देखते हैं, आपने उसके अनुरूप तर्क प्रस्तुत किये हैं। यदि मैं हिन्दू-धर्मको आपसे अधिक अच्छी तरह न जानता होऊँ तो मेरा काम किस तरह चल सकता है। फिर आपने यह दिखानेके लिये बड़ा कष्ट किया है कि अस्पृश्यता हिन्दू धर्मका अनिवार्य अंग है। मैं इस मतको स्वीकार नहीं करता और मैंने सदैव ही इसका पूरी तरहसे खण्डन किया है। मेरे लिये यह प्रसन्नताकी बात है कि मेरा हिन्दू धर्म मुझे किसी वस्तु-विशेषसे इसलिये नहीं बांधता कि वह संस्कृत श्लोकोंमें लिखी है अथवा वह हमारे किन्हीं वेद-शास्त्रोंका अंग है। यदि आपका किया हुआ घटनाओंका विश्लेषण सही हो, और यदि आपका हिन्दू धर्मके प्रति दृष्टिकोण भी सही हो, तो भी इस विश्लेषणका परिणाम हिन्दू धर्म और देश दोनोंके लिये निराशाजनक है। परन्तु मैं आपको आदरपूर्वक बताना चाहता हूँ कि शास्त्रोंके अक्षरशः ज्ञानके बावजूद आपका हिन्दू-धर्मका ज्ञान विकृत है। मैं बड़ी नम्रतासे यह दावा करता हूँ कि मैं बराबर ही हिन्दू धर्मके अनुसार जीवन व्यतीत करता रहा हूँ । परन्तु में दलील करके आपको बदल नहीं सकता। मैं जानता हूँ कि यदि में आपको लाठी की चोटोंके बलपर बदलनेकी कोशिश करूंगा तो आप तो बातकी बातमें मेरे पैर उखाड़ देंगे। इसलिये मैं जो कुछ हिन्दू पद्धतिके बारेमें जानता हूँ, उसीसे सन्तोष करूंगा और धैर्यसे अवसरकी प्रतीक्षा करूंगा ।

हृदयसे आपका,

डा० बी० एस० मुंजे
नागपुर

अंग्रेजी (एस० एन० १४६१३) की फोटो-नकलसे ।