पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/३८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


शुद्धि बहुत व्यापक शब्द है। उसके इस व्यापक अर्थका कुछ हिस्सा हम स्वीकार कर सकते हैं किन्तु कुछ त्याग करने योग्य है। मेरा खयाल है कि शुद्धिकी कोई निश्चित व्याख्या उनके ध्येयमें नहीं की गई है। इसलिए अपने-अपने प्रान्त या शहरमें सभाका कार्य जिस तरह चलता हो उसपर विचार करके हरएकको इस सम्बन्धमें स्वतन्त्र निर्णय करना चाहिए। इसलिए सच पूछें तो वहाँकी परिस्थितिको देखते हुए जो आपकी अन्तरात्मा कहे आपको वही करना चाहिए। महासभा द्वारा आयोजित सभी सभाओंमें जाना जरूरी है ऐसा कोई. ऐकान्तिक धर्म नहीं है। और ऐसा भी नहीं है कि सभामें जानेपर उसमें भाग लेना ही होगा। धर्म इतना ही है कि हम ऐसा आचरण करें, जिससे हमें अपने माने हुए धर्मके पालनमें सहायता मिले। हिन्दू-सभा द्वारा निकाले गये जुलूसका हेतु यदि झगड़ा करना न हो और वह किसी शुद्ध उद्देश्यसे निकाला जाये तो उसमें भाग लेनेमें कुछ भी आपत्ति नहीं है। कहीं दंगा हो जानेकी खबर मिले और हममें शान्ति स्थापित करनेकी शक्ति हो तो हमें अवश्य ही इस शक्तिका उपयोग करना चाहिए। दंगा रोकनेका शुभ प्रयत्न करना सबका धर्म है। 'शुभ' विशेषणका उपयोग मैंने जानबूझकर किया है। क्योंकि कायरताके इस युगमें कई लोग केवल अपने शरीरकी रक्षा करनेके इरादेसे दंगेसे दूर रहकर शान्ति-धर्मके पालनका ढोंग करते दिखाई देते हैं। इसलिए शुभ प्रयत्न का अर्थ यह है कि किसीको भी अपना धर्म छोड़कर दंगा रोकनेका प्रयत्न नहीं करना है। मेरे मन्दिरके ऊपर कोई हमला करने आये और में भाग जाऊँ या मुझे कोई भागनेकी सलाह दे तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि मैंने अथवा मेरे सलाहकारने दंगा रोकनेका प्रयत्न किया है।

सिद्धान्तके तौरपर सामाजिक बहिष्कारका समर्थन किया जा सकता है। पर मुसलमानोंका सामाजिक बहिष्कार करनेका कोई ठीक कारण अभीतक मुझे दिखाई नहीं दिया है। मुझे यह भी नहीं लगता कि उनका सार्वजनिक सामाजिक बहिष्कार किया जा सकता है।

इससे अधिक स्पष्टीकरणको आवश्यकता हो तो मुझे अवश्य लिखें । आशा है आपका दर्द दूर हो गया होगा। डा० रायजीको भी आराम हो गया होगा। आपकी एक शंकाका निवारण रह गया है। हिन्दू-सभाके अस्तित्व में सरकारका हाथ है, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं है। हाँ, यह सही है कि अपने स्वभावके अनुसार और अपनी स्थिति कायम रखनेके लिए सरकार किसी भी सभा-समितिका उपयोग कर लेती है। इस तरह तो वह हिन्दू-सभा, मुस्लिम लीग और कांग्रेसका भी उपयोग कर रही है।

यह पत्र भाई कल्याणजी और भाई प्रागजीको भी पढ़ा दें, ताकि मुझे उन्हें अलगसे न लिखना पड़े।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती (जी० एन० २६८४) की फोटो-नकलसे।