पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/३८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३३८. पत्र: गंगाबहन झवेरीको

नन्दी दुर्ग
वैशाख सुदी १३[ १४ मई, १९२७ ]

चि० गंगाबहन,

तुम्हारा पत्र बहुत दिनोंके बाद मिला। मैं उसकी राह तो देख ही रहा था । तुम कन्या गुरुकुल देख आई, यह ठीक किया। चम्पावतीबहनको पत्र लिखो तो लिखना कि मुझे संस्थाके समाचार भेजती रहें। तुम सभी बह्नोंको चोरोंसे डर नहीं लगता, इससे मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं यही चाहता हूँ कि हम आश्रममें भयभीत होकर न रहें।

सूरजबहन, पालीताणाका श्राविकाश्रम देखनेके लिए बुला रही हैं; तो समय मिले तब केवल देखनेके खयालसे अवश्य चली जाना । परन्तु वहाँ रहनेके लिए तुमने अनिच्छा प्रकट की यह बात मुझे बिलकुल ठीक लगी है। मैं चाहता हूँ कि जब तुम्हें और ज्यादा अनुभव हो जाये, तुम्हारे विचार और दृढ़ हो जायें और तुममें आत्मविश्वास आ जाये तभी तुम निजी रूपसे सेवा कार्य हाथमें लो ।

सुरेन्द्रजीमें ऐसी सरलता है कि उसका अच्छा प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। जो बहनें उनके सत्संगमें आई हैं उन्हें लाभ ही हुआ है। मैं चाहता हूँ कि अभी तुम सब बहनें उनकी उपस्थितिका पूरा उपयोग करो और उससे लाभ उठाओ। मैं उन्हें एक निर्मल हृदय ब्रह्मचारी मानता हूँ ।

तुम रामनामको अपने हृदयमें अंकित करनेका प्रयत्न कर रही हो, यह तो बहुत ही अच्छा है। यह नाम अनेक रोगोंको हरनेवाला है।

मेरी तबीयत धीरे-धीरे ठीक हो रही है। अधिकसे-अधिक पत्रोंका उत्तर देने तथा अपनेको बचानेकी दृष्टिसे मैंने आजकल अपने हाथसे पत्र लिखनेके बजाय दूसरोंसे लिखवानेकी आदत डालनेका निश्चय किया है ।

बा आशीर्वाद भेजती ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३१३५) की फोटो-नकलसे ।