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३३९. तार : लुइस डाएलको[१]

[ १४ मई, १९२७ या उसके पश्चात् ]

जनसाधरण द्वारा आत्मशुद्धि-आत्मसंयमका सीखा जाना सच्ची कला है। जर्मन जनता जीवन की इस कला को सीखनेमें समर्थ हो ।

गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० १२५००) की फोटो-नकलसे ।

३४०. अपील : दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंसे

परम माननीय श्री श्रीनिवास शास्त्रीने अपनी कितनी ही हार्दिक इच्छाओंका त्याग करके, मित्रोंके जोर दबावसे उनकी बात मानकर दक्षिण आफ्रिकामें आपकी सेवा की खातिर ही भारतके प्रथम राजदूत-पदको सँभालानेकी स्वीकृति दे दी है। अब उनकी सेवाका अच्छेसे-अच्छा उपयोग करना और अपने बीच उनकी उपस्थितिसे लाभ उठाना आपका काम है। नीचे लिखी शर्तोंका पालन किये बिना आप ऐसा नहीं कर सकते हैं :

१. आप उनसे बहुत ज्यादा आशा नहीं करेंगे।
२. शुद्ध निजी मामलों में आप उनके जरिये राहत पानेकी कोशिश नहीं करेंगे ।
३. उनके साथ किये जानेवाले किसी भी व्यवहार में आप सत्यसे कदापि दूर नहीं
हटेंगे। उनसे छल करना अपने आपसे छल करना है।
४. आप लोग आपस में मिलकर एक बने रहेंगे।
५. अपने भीतरकी बुराइयोंको दूर करेंगे और व्यवस्थित ढंगसे रहेंगे।

आप ऐसा नहीं मान बैठेंगे कि शास्त्रीजीके प्रथम प्रतिनिधिके रूपमें आते ही आपके सारे दुःख दूर हो जायेंगे। यदि वे आपके खिलाफ कोई नये प्रतिबन्धात्मक कानून न बनाने देने और पुराने प्रतिबन्धात्मक कानूनोंको जरूरतसे ज्यादा कठोर न होने देने और अभी-अभी जो समझौता हुआ है उसपर दक्षिण आफ्रिकाकी सरकार द्वारा समझौतेकी भावनाके अनुरूप अमल कराने में सफलता पा सकें तो आपको समझना चाहिए कि उन्होंने बहुत काफी काम कर लिया है।

परम माननीय शास्त्रीजी समूचे भारतके प्रतिनिधि हैं न कि अलग-अलग व्यक्तियोंके । वे वहाँ भारतके सम्मानकी रक्षा करने जा रहे हैं। इसलिए आप उनके

  1. १४ मई, १९२७ को प्राप्त लुइस डाएलके उस तारके उत्तरमें; जिसमें लिखा था: "इम जन- साधारणके महान् जर्मन कलाकार केट कोलविटसका जन्मदिन मना रहे हैं। कृपया तार द्वारा सन्देश भेजें। "