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३४१. टिप्पणी

रामचन्द्र कोस

रामचन्द्र कोसका उपयोग पिछले कई महीनोंसे गुजरातमें हो रहा है। यह कोस कई जगह भेजा जा चुका है। पालनपुरके सेठ अमृतलाल रामचन्द्र झवेरीने एक कोस मँगाया था। उसके विषय में उन्होंने निम्नलिखित लिख भेजा है।[१]

इसी प्रकार, जिन दूसरे लोगोंने कोस मँगाया है वे भी अपने अनुभव लिख भेजेंगे तो मैं उनका समुचित उपयोग करूंगा। यह कोस मुझे जीवदयाकी दृष्टिसे बहुत उपयोगी जान पड़ा है; उसके इस गुणके कारण ही में इसकी झंझटमें पड़ा हूँ । इसकी थोड़ी आलोचना भी सुनने में आई है। इस आलोचनाकी जांच की जा रही है। मुझे तो अभी इस टीकामें कोई वास्तविकता नहीं दिखी। यदि उसमें कुछ वास्तविकता लगी तो मैं इन टीकाओंको अवश्य प्रकाशित करूंगा। [२] मुझे यह बार-बार कहनेकी जरूरत नहीं है कि इस कोसका प्रचार किसी तरहसे व्यावसायिक लाभकी दृष्टिसे नहीं किया जा रहा है। श्री रामचन्द्र अय्यरने २५ रु० फी कोसके हिसाबसे १,००० कोस तक देनेकी शर्तपर इस कोसके अधिकार बेच दिये हैं। इतना तो उन्हें मिलना ही चाहिए, क्योंकि उन्होंने सिरपर काफी कर्ज कर लिया है और उनके गुजर-बसरके लिए भी तो कुछ घनकी जरूरत है। परन्तु इसके अलावा इस कोसके दाममें लागत भरके ही दाम रखे गये हैं, उससे ज्यादा नहीं। जो लोग इस कोसको देखना चाहें, वे इसके लिए सत्याग्रह आश्रम आ सकते हैं।

जहाँ हेतु सिर्फ धार्मिक तथा सत्यकी खोज हो वहाँ किसी वातको छिपानेका कोई कारण नहीं है। ऊपर जो प्रशंसा प्रकाशित की है उसका उद्देश्य स्पष्ट है। उद्देश्य यह है कि यदि ये गुण इस कोसमें सचमुच हैं तो उसका लाभ सबको मिलना चाहिए। सत्याग्रह आश्रममें पहले एक कोस लगाया गया था, अब चार लगाये जा चुके हैं। इनमें से तीन चालू हैं और एक बादमें चलाया जायेगा। किन्तु मैं इतना प्रमाण काफी नहीं मानता । जिन लोगोंने कोस खरीदा है उन सबको उससे सन्तोष हो और उन्हें ऐसा लगे कि इसके उपयोगसे प्राणी और पैसा दोनोंकी बचत होती है, तो फिर इसके विरुद्ध कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी तकके अनुभव रामचन्द्र कोसके पक्षमें हैं, इतना अवश्य कहा जा सकता है ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, १५-५-१९२७

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
  2. यहाँ से आगे इस अनुच्छेदके अन्त तकका भाग यंग इंडिया, २६-५-१९२७से लिया गया है।