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३४२. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

नन्दी हिल्स
१५ मई, १९२७

प्रिय बन्धु,

यह पत्र मुझे बोलकर ही लिखवाना पड़ रहा है। मैं आपसे एक बात कहना भूल गया था । मुझे कुछ ऐसा ध्यान है कि मैंने आपको उमर हाजी अहमद झवेरीका नाम बताया था । जीवनमें जो सर्वाधिक सत्यवादी पुरुष मेरे सम्पर्कमें आये हैं वह उनमें से एक हैं। यदि उनका किसी व्यक्तिके प्रति दुर्भाव होता है, तो मुझे मालूम है कि श्री झवेरी यह बात उसके सामने स्पष्ट कह देते हैं और क्षमा माँग लेते हैं। वह स्व० अबूबकर अहमदके, जो दक्षिण आफ्रिका जानेवाले प्रथम भारतीय व्यापारी थे, भाई हैं। उमर हाजी अहमदकी डर्बनमें बड़ी भारी सम्पत्ति है, और उनके पास प्रिटोरियामें चर्च स्ट्रीटके केन्द्रीय स्थानपर एक जमीनका टुकड़ा है, जिसपर सुन्दर भवन बने हुए हैं। ट्रान्सवालमें केवल यही सम्पत्ति एक भारतीयके नामपर रजिस्ट्री की हुई है। इस सम्पत्तिपर भारतीयोंका स्वामित्व बना रहे, इस बातपर जमे रहना हमारे लिये मानका प्रश्न बन गया था। श्री झवेरी मुझे कह रहे थे कि इस सम्बन्धमें कुछ झगड़ा है । आजकल मामलेकी जो स्थिति है उसके सही हालात मुझे मालूम नहीं है, यद्यपि मैं उसके पुराने ब्यौरे निस्सन्देह अच्छी तरह जानता हूँ। यह मामला शायद आपके सामने आये । तब आप इस तथ्यको, जिसका मैंने जिक्र किया है, ध्यानमें रखियेगा । यह व्यक्तिगत मामला नहीं है। इसका राष्ट्रीय हितसे सम्बन्ध है। इस सम्बन्धमें जनरल स्मट्स और मेरे बीच पत्र-व्यवहार भी हुआ है । यदि कभी यह मामला आपके सामने आये, तो आप सारे कागजात देख लीजियेगा ।

मैंने डा० मलानका तार देखा था । वह बड़ा शानदार था। मुझे प्रसन्नता है कि आप बड़ी जल्दी ८ जूनको ही जा रहे हैं। बेचारे एन्ड्रयूजकी बड़ी बुरी दशा हो रही है। आप दक्षिण आफ्रिका समयसे एक क्षण भी पहले नहीं पहुँचेंगे।

नेटाल प्रान्तीय परिषद्का मतदान निस्सन्देह बुरी शुरुआत है। परन्तु केप संसदमें नेटालके मतका कोई महत्त्व नहीं। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि नेटालके सदस्योंसे आपको कोई कठिनाई नहीं होगी। उनमें से कुछ अच्छे हैं, और उनमें से सभीको ट्रान्सवाल, ऑरेंज और केप तकके सदस्योंके विपरीत, अंग्रेजोंके साथ सम्बन्धका अभिमान है। परन्तु सम्भवतः आप इन सब बातोंको पहलेसे ही जानते हैं।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२३५१) की फोटो-नकलसे ।