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३४३. पत्र : सी० नारायणरावको

नन्दी हिल्स
१५ मई, १९२७

प्रिय मित्र,

मेरी बीमारीके कारण इतने लम्बे अरसेतक आपका पत्र बिना उत्तर दिये पड़ा रहा। क्या अब भी आपकी इच्छा आबकारी विभागको छोड़ देनेकी है ? क्या आप आश्रममें जाने एवं बिना किसी वेतनके वहाँका अनुशासन पालन करनेके लिये तैयार हैं ? यद्यपि आपको खाना बनानेका काम नहीं आता, तो भी आपके लिए रसोईके काममें भाग लेना अनिवार्य होगा। जो-कुछ आप नहीं जानते, आपको सिखाया जायेगा । यदि आपको वहाँ प्रवेश मिल गया तो आपसे आशा की जायेगी कि आप हिन्दी सीखें । आपसे यह भी आशा की जायेगी कि आप सुबह ४ बजे उठें और ४ बजेसे शामके ७-३० बजेतक आश्रमके सामूहिक कार्यमें कुछ हिस्सा बॅटायें; निःसन्देह स्नानादिके लिए आवश्यक छुट्टी दी जाती है। इस तरह आप देखेंगे कि सायंकाल ८ बजेसे पहले निजी अध्ययनके लिये आपके पास समय नहीं बचेगा। दिनके समय एक घण्टेका विश्राम होगा। परन्तु कठिन परिश्रमके उपरान्त कुछ भी पढ़नेमें आपका मन नहीं लगेगा। सच पूछो तो आश्रममें उन स्वयंसेवकोंके लिये जो आश्रमके अनुशासनका पालन करनेको बाध्य हैं, 'आठ घंटेका दिन' नामकी कोई चीज नहीं है। आपसे यह अपेक्षा की जायेगी कि आप रात्रिको ९ बजे बिस्तरपर लेट जाएँ। वास्तवमें आश्रमका एक आदर्श वाक्य है कि लोकहितके लिये किया जाने- वाला कार्य प्रार्थना है और कार्य ही ईश्वर भक्ति है। यदि आप समझते हैं कि आप आश्रम के अनुशासनका पालन कर सकते हैं तो कृपया मुझे बताइये। मैं आपके पत्रको आपको प्रवेश देनेकी सिफारिश सहित आश्रमके प्रबन्धकको भेज दूंगा । अन्तमें आपको आश्रममें प्रवेश मिले या न मिले, यह प्रबन्ध समितिपर निर्भर करेगा । समितिका आश्रमकी सभी चीजोंपर पूर्ण नियन्त्रण है।

हृदयसे आपका,

श्री सी० नारायणराव

उत्पादन कर विभाग
बेजीपुरम्

(डाकखाना बरहामपुर)

अंग्रेजी (एस० एन० १२५६४) की फोटो-नकलसे ।