३४४. पत्र: एन० एच० तेलंगको
नन्दी हिल्स
१५ मई, १९२७
अपनी बीमारीके कारण मैं आपके पत्रके सम्बन्धमें आगे कुछ नहीं कर सका हूँ। यदि आप प्रशिक्षण कक्षामें प्रवेश ले लें तो आपको खर्चा दिया जायेगा, परन्तु उसमें शर्त यह होगी कि आप इकरारनामा भरें कि जब प्रशिक्षण समाप्त हो जायेगा, आप अखिल भारतीय चरखा संघकी सेवा करेंगे। यदि आप असाधारण कुशलता दिखायेंगे तो सम्भव है कि आपको साधारण समयसे पूर्व ही पास होनेका प्रमाणपत्र मिल जाये और तब हो सकता है कि उसी समय आपको नौकरीमें ले लिया जाये । यदि इन परिस्थितियों में आप प्रशिक्षण लेनेको तैयार हैं तो आपके प्रवेशके बारेमें मुझे अधिक कठिनाई नहीं दिखाई देती ।
हृदयसे आपका,
अध्यापक
ए० वी० स्कूल
अंग्रेजी (एस० एन० १२५६७ ए) की माइक्रोफिल्मसे ।
३४५. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको
नन्दी हिल्स, बंगलोर
१५ मई, १९२७
आपका पत्र मिल गया है। आश्रममें से जो कुछ भी लिखा गया है उसका मुझे कोई पता नहीं था जबतक आपका पत्र नहीं मिला था। मैं बीमारी बिछौने पर हूँ यह तो आपको मालूम ही होगा । आश्रमसे ऐसा पत्र क्यों लिखा गया उसका मैं तो केवल अनुमान ही कर सकता हूँ। वह यह है कि तोतारामजीका सब कार्य नियमबद्ध है ऐसा मैंने देख लिया है। उन्हींकी प्रेरणासे पत्र लिखा गया होगा। यदि यह ठीक है तो उसमें दुःख माननेका कोई कारण नहीं है। मेरा तो आपकी सच्चाई ऊपर निःसन्देह पूरा विश्वास है। परंतु जब कोई कार्य एक ...[१]भाईसे बनता है
- ↑ मूलमें अस्पष्ट है।