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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तब शुद्धतम पुरुषको भी चाहिये कि वह सामान्य नियमसे स्वेच्छापूर्वक बद्ध रहकर चले।

यद्यदा चरति श्रेष्ठ: इ०[१]

आपको यह भी मालूम नहीं होगा कि आजकल आश्रममें एक कार्यवाहक मंडल बन गया है और सब कार्य उसी मंडलके मार्फतसे बनता है। और मेरी बीमारीके बाद मंडलने प्रत्येक जिम्मेवारीमें से मुझको मुक्त कर लिया है। इसका यह भी तो फलितार्थ है कि मैं कुछ अधिकार भी न रक्खूं, न उसका अमल करूं। इतना लिखने पर भी यदि में आपको संतोष न दे सका हूं तो आप मुझको लिखिये मैं और क्या करूं ?

आजकल क्या कर रहे हो ? आजीविकाका कौनसा साधन रख लिया है ?स्वास्थ्य अब सुधर रहा है।

आपका,
मोहनदास

मूल (जी० एन० २५७६) की फोटो-नकलसे।

३४६. पत्र : मीराबहनको

दुबारा नहीं पढ़ा

नन्दी हिल्स
१६ मई, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारा पत्र मिला। मेरे खयालसे अब तुम्हें रोगमुक्त माना जा सकता है। और इसलिए मैं अब तुम्हें स्नेह-पत्र भेजनेकी ओरसे जरा निश्चित हो गया हूँ।

मैं बराबर प्रगति कर रहा हूँ। आज बंगलोरके डाक्टर आये थे और उन्होंने रक्तचाप सिर्फ १५० और साधारण हालत बिलकुल अच्छी बताई। वे चाहते हैं कि मैं जितना खा रहा हूँ उससे अधिक खाऊँ। देखूंगा कि इस दिशामें क्या हो सकता है। मैं रोटी और सब्जी छोड़नेपर इसलिए विवश हुआ हूँ कि मैं उन्हें बहुत भारी मानता हूँ। अब मुझे एक और प्रयत्न करना पड़ेगा। लेकिन मुझे कोई सन्देह नहीं कि मैं पहलेसे अच्छा हो रहा हूँ।

मैं देखता हूँ कि तुम अपने काममें उन्नति कर रही हो। वहाँ कितनी स्त्रियाँ और कितनी लड़कियाँ हैं? कितने पुरुष और कितने लड़के हैं ? जब सम्भव हो मुझे आश्रम और आश्रमवासियोंके बारेमें सर्वसामान्य जानकारी लिखना।

  1. भगवद्गीता अध्याय ३, २१ ।