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३४९. पत्र: गंगादेवी सनाढ्यको[१]

नन्दी दुर्ग
वैशाख १५ [१६ मई, १९२७]

प्रिय भगिनी,

आपका शरीर अब तक ठीक नहि हुआ है। यह कै अब बहोत दिन हुए ? क्या कुछ और इलाज करनेकी इच्छा भी नहिं होती है ? सब हाल मुझको तोताराम लीखे। आपको लीखनेका कष्ट उठानेको कोई आवश्यकता नहिं है।

बापूके आशीर्वाद

मूल (जी० एन० २५४८) की फोटो-नकलसे ।

३५०. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

नन्दी हिल्स
१७ मई, १९२७

प्रिय सतीशबाबू,

मेरी बीमारी तो शीघ्रतासे एक बीती बात बनती जा रही है; किन्तु आपकी बीमारी हठीली जान पड़ रही है। जबतक ऐसी स्थिति बनी रहती है, आपको हरगिज बाहर नहीं निकलना चाहिए। क्या आप वहाँ कोई इलाज करवा रहे हैं? पर यह बीमारी इस तरह अटल कैसे हो गई है ? आप भोजनमें क्या-क्या ले रहे हैं ? मैं यह प्रश्न इसलिये पूछ रहा हूँ कि श्री ग्रेगने मुझे एक पुस्तक भेजी है, जिसमें भोजनपर नवीनतम अनुसन्धान और भोजनका स्वास्थ्यसे जो सम्बन्ध है, उस विषय पर सामग्री है। बहरलाल इस पुस्तकके अलावा भी मुझे ऐसा लगता है कि यह भी हो सकता है कि आपका शाकाहार आपके शरीरके अनुकूल न बैठता हो, क्योंकि आपके शरीरका निर्माण मांसाहारपर हुआ है। आहार परिवर्तनसे प्रत्यक्ष हानि भले न हुई हो, परन्तु ऐसा हो सकता है कि इससे शारीरिक गठन दुर्बल हो गया हो या यह भी हो सकता है कि आहार परिवर्तनसे नष्ट प्राय शारीरिक गठनके पुननिर्माणमें कोई सहायता न मिलती हो । ऐसी ही दशा मेरी भी हुई थी । ६ वर्षसे अधिक समयतक मैं कन्दमूल और फलपर निर्भर रहा। परन्तु पेचिशके उग्र हानिकर प्रभावके बाद, बिना दूधके मैं अपने शरीरका पुननिर्माण नहीं कर सका । ४५ वर्ष या विशेषकर ४० वर्षतक मेरा शरीर किसी-न-किसी रूपमें दूधका सेवन करनेका

  1. साबरमती आश्रम के अन्तेवासी फीजीसे लौटे प्रवासी तोताराम सनाढ्य की पत्नी।