पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/४००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अभ्यस्त था । आप मेरी कट्टर प्रवृत्ति जानते हैं, जो शाकाहारके पक्ष में हठयमिताकी सीमातक पहुँच जाती है। परन्तु मेरी हठधर्मिता मुझतक ही सीमित रहती है। इसका सीधा-सा कारण यह है कि मेरे लिये यह जीवन-भरके अभ्यास और गहरी धर्म-निष्ठाका विषय है। परन्तु धर्म-निष्ठा प्रत्येक व्यक्तिका अपना निजी मामला है। इसलिए यद्यपि मैं शाकाहारी हूँ, मैं अपने विश्वासको अपने मित्रोंपर नहीं थोपता। परन्तु मैं उन्हें, चाहे वे मेरे प्रभावमें हों तो भी, अपनी इच्छाके अनुसार कार्य करनेके लिए स्वतन्त्र रहने देता हूँ। उदाहरणके तौरपर जैसा कि मैंने छगनलालके पुत्र प्रभुदासके सम्बन्धमें किया। मेरे एक अंग्रेज मित्र थे जो डर्बनमें मेरे साथ रहते थे। मेरे प्रभाव में आकर वह शाकाहारी हो गये थे। कुछ समय बाद वह बीमार पड़ गये । यह स्पष्ट था कि वह अपनी प्रकृतिके अनुकूल भोजन किये बिना ठीक नहीं रह सकते थे। मैंने उनसे प्रार्थना की कि वह बाहरसे मांस मँगवा लें और ठीक हो जायें। मैं अपने घरमें मांसाहार नहीं होने दे सकता था। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप इस विषयपर गम्भीरतासे सोचें। आपको केवल अपना ही खयाल नहीं रखना है, अपितु निखिलका भी खयाल रखना है। यदि हेमप्रभादेवीका स्वास्थ्य अब भी आपके स्वास्थ्यकी तरह ही खराब है और यदि तारिणी शाकाहारी हैं, तो उनका भी खयाल रखना है। यदि आप दालें खाते हैं, तो दालें दुर्बल लोगोंके लिए और ऐसे लोगोंके लिए जिन्हें बैठे रहनेकी आदत होती है, निस्सन्देह बहुत ही नुकसान पहुँचाती हैं। आपने देखा है एन्ड्रयूजने कितनी उद्विग्नतासे पिसे हुए चावलके बारेमें इतनी दूर दक्षिण आफ्रिकासे तार भेजा है। श्री ग्रेग द्वारा भेजी हुई पुस्तक पढ़नेके बाद मेरी आपके भोजनके विषय में चिन्ता बढ़ गई है।

यदि आपको बुद्ध धर्मपर कोई विशेष पुस्तक चाहिए तो कृपया लिखिये । मैं इसे प्राप्त करनेकी कोशिश करूंगा।

'नवजीवन' में योगके सम्बन्धमें जो अनुच्छेद है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने भी यौगिक क्रियाओं के सम्बन्धमें सोचा है, परन्तु मैंने इनके केवल दो पहलुओंपर ध्यान रखकर ही विचार किया है। वे हैं स्वास्थ्य सुधारनेमें एवं ब्रह्मचर्य-साधनमें इन क्रियाओं का विशेष रूपसे सहायक होना । पहलेका सम्बन्ध मेरे स्वास्थ्यसे है और दूसरेका सम्बन्ध विद्यार्थियोंसे है, जिनका मस्तिष्क दुर्व्यसनोंमें पड़े रहनेके कारण विकृत हो गया है। मैंने अपनी बीमारीके दौरान ब्रह्मचर्यपर एक पुस्तक पढ़कर एवं आसनोंके प्रयोगके सम्बन्धमें बहुतसे उल्लेख सुनकर आगे अनुसन्धान करना शुरू किया। इससे महत्तर आत्मशुद्धि प्राप्त करनेमें अधिक सहायता मिलनेकी आशा नहीं है। यह बात नहीं कि जो कुछ मैं प्राप्त कर सकता हूँ, उस सबकी मुझे आवश्यकता नहीं है, परन्तु मुझे ऐसा नहीं लगा कि इन यौगिक क्रियाओंसे में वह सब कुछ प्राप्त कर लूंगा। एक व्यक्तिने, जो अपने आपको योगमें निपुण समझते हैं, मुझे बताया है कि राजयोग, हठयोग और कर्मयोग अपनी अन्तिम दशामें एक ही चीज बन जाते है। प्रत्येक आकार एवं रूपमें वासनाओंपर विजय कदाचित् केवल अन्तिम दशामें ही सम्भव है। हठयोगमें अन्तिम दशा प्राप्त करना बड़ा कठिन है। उसके लिए