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२. भाषण: मोतीहारीमें[१]

२२ जनवरी, १९२७

सभापति महोदय, सदस्यगण और भाइयो,

मोतीहारीमें आनेपर मुझे पुरानी बातें[२] स्मरण हो आती हैं। वे स्मरण पावन हैं। यह प्रदेश मेरे लिए ऐसा ही है जैसा साबरमती। यहाँ मुझे केवल एक घंटे ठहरना है। यह समय काफी नहीं है। किन्तु यह सब ईश्वरके हाथमें है—१ घंटे तक रहूँ या अधिक। मुझे ३ बजे या ३। बजेकी ट्रेनसे जाना है। इसलिए मैं कोई लम्बा उत्तर नहीं दे सकता। आप लोगोंने मुझे मानपत्र [३] दिया है उसके लिए मैं आभारी हूँ। आपका मानपत्र स्मरण योग्य है ऐसा मैं समझता हूँ। आपने अपने मानपत्रमें अपनी कार्रवाईका जो विवरण दिया है, उसके लिए मैं धन्यवाद देता हूँ। आपने जिस भाषा में यह मानपत्र दिया है उसके लिए मैं आपका एहसान मानता हूँ।

आज, २-२-१९२७
 

३. पत्र: वल्लभभाई पटेलको

रेलमें
रविवार, २३ जनवरी, १९२७

भाईश्री वल्लभभाई,

भाई अमृतलाल ठक्कर शायद काठियावाड़ राजनीतिक परिषदके अध्यक्ष बनने से इनकार कर दें। वहाँ उन्हें राजनीतिके बारेमें कुछ भी नहीं कहना पड़ेगा; फिर भी राजनीतिक परिषद नाम ही उन्हें अटपटा लगता है। मेरे खयालसे देशी राज्योंकी परिषदोंमें राजनीतिको अभी कोई स्थान नहीं है। वहाँ अभी लोगोंने मिलकर काम करना ही नहीं सीखा है। इसलिए मुझे तो वहाँका मध्यबिन्दु चरखा ही लगता है। अगर अमृतलाल इनकार करें, तो आप अध्यक्ष बन जायेंगे न? मैंने मान लिया है कि आपके विचार मेरे विचारोंसे मिलते हैं। परन्तु यदि इस सम्बन्ध में आपके विचार मेरे विचारोंसे भिन्न हों, तो आप जरूर इनकार कर सकते हैं। कामका बोझ सिर पर आ पड़नेके डरसे इनकार न करें। इसे तो हम उठा लेंगे। जवाब तार द्वारा दीजिये। यह पत्र आपको गुरुवारको मिलेगा। जवाब जमुई (बिहार) भेजें। वहाँ हम

  1. गांधीजीने यह भाषण जिला बोर्ड कार्यालयके सामने हुई एक सभामें दिया था।
  2. १९१७ का चम्पारन आन्दोलन, देखिए खण्ड १३।
  3. मानपत्र हिन्दोमें खद्दरपर छपा था और चाँदीकी अशोक-स्तम्भनुमा पेटीमें रख कर दिया गया था।