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पत्र : मूलचन्द अग्रवालको

सतत अभ्यासकी आवश्यकता है। यह सुनकर मुझे अचम्भा नहीं हुआ। क्योंकि मैं इस बातको अधिकारपूर्वक बताये जानेके पूर्व ही जानता था। इसलिए इस प्रकारकी विजयके लिए मुझे सतत उसी पथपर चलते रहना है, जिस पथका मैंने इतनी देर तक अनुसरण किया है। परन्तु इनमें से कुछ आसनों द्वारा मैं हलका व्यायाम कर रहा हूँ। जैसे ही मुझमें शक्ति आ जायेगी, मैं और अधिक व्यायाम करना चाहूँगा । इसलिए आपको यौगिक क्रियाओं के बारेमें अधिक कुछ नहीं सोचना चाहिए। किसी दिन इस सम्बन्धमें पूर्वाशाओं और गलतफहमियोंको दूर करनेके लिए 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें लिखनेका मेरा विचार है। यदि स्वास्थ्य सुधारनेके लिए आसनोंके साधारण प्रयोगके सम्बन्धमें मैंने कोई खोज की, तो मैं निश्चय ही आपको लिखूंगा ।

सस्नेह,

आपका,
बापू

अंग्रेजी (जी० एन० १५७०) की फोटो-नकलसे ।

३५१. पत्र : मूलचन्द अग्रवालको

नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण २ [१८ मई,१९२७ ]

भाई मूलचन्दजी,

आपका पत्र मिला है। आपने खादीका कामका आरंभ कर दिया है उसलिये आपको धन्यवाद देता हूँ। मेरी बीमारी के कारण आजकल चरखा संघका काम जमनालालजी कर रहे हैं। उनको आपका पत्र दूंगा। एक दो दिनमें वे यहां आ रहे हैं।

आपका
मोहनदासके वं[ दे ]मा[ तरम्]

मूल (जी० एन० ७६१) की फोटो-नकलसे ।