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३५२. नागपुर सत्याग्रह

अखबारोंमें एसोसिएटेड प्रेसका एक तार देख रहा हूँ, जिसमें यह दिया गया है कि श्री मंचरशा अवारीने कहा है कि बंगालके कैदियोंकी रिहाईके उद्देश्यसे शस्त्र- कानून और विस्फोटक द्रव्य सम्बन्धी कानून (एकस्प्लोजिव सब्स्टेंसेस ऐक्ट) के सिलसिलेमें उनके सविनय अवज्ञा आन्दोलनके साथ मेरी पूरी सहानुभूति और अनुमति है।

यदि मुझे ठीक तरहसे याद है, तो या तो एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिने श्री अवारीके कथनका कुछ गलत अर्थ निकाला है, या स्वयं श्री अवारी ही मुझे गलत समझे हैं। मुझे तो कुछ याद नहीं पड़ता कि मैंने श्री अवारीको किसी भी तरहकी बातके सम्बन्धमें सविनय अवज्ञा शुरू करनेके पक्षमें पहले ही से अपनी सम्मति दी हो। इस तरहकी सम्मति पहलेसे दे देना वस्तुतः मेरे स्वभावके विपरीत है। श्री अवारीकी देश-भक्ति और स्वार्थ-त्यागके लिए मेरे दिलमें बड़ी जगह है और मैंने उनके साथ सविनय अवज्ञाके सिद्धान्तपर बातचीत जरूर की थी। मैंने सविनय अवज्ञाकी गम्भीर मर्यादाओंकी ओर भी उनका ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने बंगालके नजरबन्द कैदियोंके विषयमें बड़ी ममता और चिन्ताके साथ अपनी बात की थी और यह उचित भी था । मुझे याद है कि मैंने उनसे यह कहा था कि यदि सविनय अवज्ञा सरीखे किसी आन्दोलनकी बात सोची जा सके और सफलताके साथ उसे शुरू किया जा सके, तो एक बड़ा काम होगा। अब भी मेरा यही मत है। क्योंकि मैं मानता हूँ कि बंगालके देशभक्तोंको किसी भी प्रकारकी जाँचके बिना अनिश्चित समयतक जेलोंमें डाले रखना एक भारी अन्याय है। और यदि अभीतक में इस विषयपर चुप रहा हूँ तो इसलिए नहीं कि मेरे दिलमें उन देशभक्तोंके प्रति उनके घनिष्ठतम मित्रों जितना हो प्रेम नहीं है, बल्कि इसलिए कि मैं व्यर्थ ही अपनी वेबसीका इजहार करना नहीं चाहता। सार्वजनिक कार्यकर्ताको जिस बातमें उसका बस न चले उसे धीरजसे सहना सीखना पड़ता है और यदि रोगशय्यापर पड़ा हुआ भी मैं उन बंगाली देशभक्तोंको उस कैदसे छुड़ानेका कोई व्यावहारिक और शान्तिपूर्ण उपाय सोच सकता, तो में जरा-सी भी झिझकके बिना उसपर एकदम अमल करने लग जाता। लेकिन में स्वीकार करना हूँ कि ऐसा कोई उपाय मुझे नहीं सूझता। मेरी अपनी निजी राय तो यही है कि अभी देशमें सविनय अवज्ञाके लिए अनुकूल वातावरण नहीं है। हमारे बड़े बुरे दिन चल रहे हैं। आज वातावरण अहिंसात्मक सविनय अवज्ञाके लायक नहीं, बल्कि देश में अत्यन्त हिंसात्मक और आत्मघातक अवज्ञाका वातावरण है।

मुझे कतई कुछ पता नहीं कि नागपुरमें क्या किया जा रहा है। मैं श्री अवारीके आन्दोलनपर कोई राय प्रकट नहीं कर सकता और मैंने उनके इस आन्दोलनको अपनी सम्मति भी नहीं दी है। मैं तो उसके विषयमें एक भी शब्द कहना नहीं