करता हूँ । यदि आप इस अपमानजनक गृहयुद्धको समाप्त करने एवं आजकल हम लोग जो पशु बने हुए हैं, उन्हें मानव बनाने में सफल हो जायें, तो मुझे अत्यन्त हर्ष होगा । मेरी सेहत बराबर सुधर रही है और मैं जितना हो सकता है, उतने ध्यानसे आपकी हलचलोंकी जानकारी रखनेकी कोशिश कर रहा हूँ ।
पूर्ण शुभ कामनाओं सहित,
हृदयसे आपका,
मेलापुर
अंग्रेजी (एस० एन० १४१२४) की फोटो-नकलसे ।
३५६. पत्र : छगनलाल गांधीको
नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण ३ [१९ मई, १९२७][१]
तुम लिखते हो कि कराची जानेके बजाय अभी मणिबहनका आश्रम में रहना ही ज्यादा अच्छा होगा। यह तो दैव ही जाने कि जानेका अवसर आयेगा भी या नहीं। किन्तु वह वहाँ न जाये तो भी उसे कहीं तो भेजना ही है। कारण, आश्रमके प्रति उसके मनमें कोई ममताका भाव में अभी तक नहीं देख पाया हूँ। लड़की मनकी बहुत साफ, खरी और ईमानदार है इसलिए वह जहाँ भी होगी, काम तो करेगी ही, किन्तु इसके साथ ही वह रुचि लेना सीखे और उसमें स्नेह-भावका विकास हो, इसका प्रयत्न तो तुम सबको करना ही चाहिए। यदि तुमसे बने तो उसे वहीं रखो। और [ फिलहाल ] यदि ऐसा हो सकता है तो फिर मुझे उसे अन्यत्र भेजनेकी जरूरत नहीं रह जाती । कराची जानेकी बात यदि तय होती है तो मैं वैसा होने दूंगा । किन्तु कुछ समय के बाद उसे वापस बुलाया जा सकता है। बहनोंने रसोई घरकी जिम्मेदारी उठा ली है, यह जानकर खुश हुआ। उन सबको मेरी ओरसे बधाई देना और कहना कि उन्होंने जो काम हाथमें लिया है उसे उन्हें सुशोभित करना ही चाहिए ।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती (सी० डब्ल्यू० ९१८७) से ।
सौजन्य : छगनलाल गांधी
- ↑ वर्षका निर्धारण पाठके आधारपर किया गया है।