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३५९. एक पत्र

आश्रम
साबरमती [१]
२० मई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, जिसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । आपने जिन लेखोंका जिक्र किया है, उनके अलावा एवं जी० ए० नटेसन द्वारा संग्रहीत लेखों, १९२२ से लेकर 'यंग इंडिया' की प्रतियों और मेरी 'इंडियन होमरूल'[२] नामक पुस्तिकाके अलावा स्व० रेवरेन्ड जोसेफ डोक, डा० पी० जे० मेहता और एच० एस० एल० पोलक द्वारा लिखित निबन्ध भी हैं। इनमेंसे बहुतसे प्रकाशन 'इंडियन रिव्यू', मद्रासके जी० ए० नटेसनसे प्राप्त किये जा सकते हैं । 'यंग इंडिया' का सम्पा- दन में करता हूँ और इसका प्रकाशन अहमदाबादमें होता है । 'एथिकल रिलिजन [३] मूल पुस्तक नहीं है। यह अमेरिकामें प्रकाशित, साल्टर द्वारा लिखित 'एथिक्स ऑफ रिलिजन,' जिसे मैंने कई साल पहले पढ़ा था, के गुजराती रूपान्तरका अनुवाद है। मैंने इसका अनूदित रूप नहीं पढ़ा है। इसलिए इस पुस्तकसे मेरे सिद्धान्तोंके विषय में ज्ञान प्राप्त करना जोखिमका काम होगा। यदि आपको और कुछ जानना आवश्यक लगे तो संकोच न कीजिये । कृपया उसके बारेमें पूछ लीजियेगा । आपने मेरे स्वास्थ्य के सम्बन्धमें जो पूछताछ की, उसके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ। मेरे स्वास्थ्य में बराबर सुधार हो रहा है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १४१२५) की फोटो-नकलसे ।

  1. स्थायी पता ।
  2. देखिए खण्ड १०।
  3. देखिए खण्ड ६ ।