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३६०. पत्र : वसुमती पण्डितको

नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण ४ [२० मई, १९२७]

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला । यदि लिखने लायक कोई बात न सूझे तो भी सप्ताहमें एक बार पत्र लिखनेसे तुम्हें छुट्टी नहीं मिल सकती। और कुछ नहीं तो इससे मुझे इतना तो देखने को मिलेगा ही कि तुम्हारी लिखावटमें कितना सुधार हुआ है। और यदि तुम्हें लिखनेको कुछ भी न मिले तो पत्र लिखनेके (अथवा उससे पहले) दिन तुमने जो कुछ किया हो उसका विवरण ही लिख दिया करो ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ४७४) से ।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

३६१. पत्र : जॉर्जेस मिग्ननको

आश्रम
साबरमती [१]
२१ मई, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, जिसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।

आप अपनी पत्रिकामें 'सत्यके प्रयोग' नामक मेरी पुस्तकके परिच्छेद प्रकाशित कर सकते हैं। उन्हें फ्रेन्च भाषामें पुस्तकके रूपमें प्रकाशनके अधिकार एम० एमिल रोनिगरको पहलेसे ही दिये जा चुके हैं। इसलिए आप अपने अनुवादको कृपया अपनी पत्रिकामें प्रकाशित करनेतक ही सीमित रखें। मैं समझता हूँ कि आप कृपापूर्वक अपनी पत्रिकाकी वे प्रतियाँ, जिनमें वह अनुवाद समय-समयपर छपता रहेगा, मेरे पास भेजते रहेंगे ।

हृदयसे आपका,

एम० जॉर्जेस मिग्नन

सम्पादक, 'एक्सट्रीम-एशिया'

संगोन

अंग्रेजी (एस० एन० १२५०५) की फोटो-नकलसे ।

  1. स्थायी पता।