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३६२. पत्र : मु० अ० अन्सारीको

नन्दी हिल्स
२१ मई, १९२७

प्रिय डा० अन्सारी,

आपकी बीमारीका समाचार सुनकर मुझे बड़ा दुःख हुआ। आशा है कि आप शीघ्र स्वस्थ हो जायेंगे। आप स्वास्थ्य सुधारनेके लिये यहाँ क्यों नहीं आ जाते ? जैसा कि आप जानते ही हैं, यहाँका जलवायु बड़ा अच्छा है।

जाने क्यों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके प्रस्तावसे [१] मुझे तात्कालिक परिणामकी आशा नहीं बँधती; उससे कोई उत्साहका सवाल तो कतई नहीं उठता। मेरे अन्तस्तलमें वह आशा तो विद्यमान है जो दृढ़ विश्वाससे आती है। परन्तु उस आशाको इस प्रस्तावसे कोई ज्यादा प्रेरणा नहीं मिलती। क्योंकि मैं महसूस करता हूँ कि वे थोड़ेसे लोग जो निष्पक्ष भावना रखते हैं, या जिनके चित्त शान्त रहते हैं, इस समय जो संघर्ष कर रहे हैं या जो संघर्ष करनेवाले लोगोंके पृष्ठपोषक हैं, उन लोगोंपर कोई प्रभाव नहीं डाल सकते। मैं नहीं जानता कि आप उनपर अपना कोई प्रभाव मानते हैं या नहीं। मुझे इसमें धर्मकी आड़में हो रही शैतानीके अलावा और कुछ भी नहीं दिखाई देता। जबतक हम आदमी बनना नहीं सीखते और इसीलिए काल्पनिक या वास्तविक अधिकारोंपर किये गये प्रहारोंसे सम्बद्ध मामलोंको मध्यस्थताके लिये सुपुर्द करना नहीं सीखते, और जबतक हम सरकारी हस्तक्षेपके बारेमें सोचना बन्द नहीं कर देते, तबतक क्या हमें वास्तविक शान्ति और वास्तविक स्वराज्य मिल सकता है ? मुझे इससे कम किसी भी चीजसे संतोष नहीं है। इसलिए मेरी एकमात्र आशा प्रार्थना और उसके सुने जानेमें है।

हृदयसे आपका,

डा० एम० ए० अन्सारी

१, दरियागंज

दिल्ली

अंग्रेजी (एस० एन० १४१२६) की फोटो-नकलसे ।

  1. हिन्दू-मुस्लिम एकतापर; देखिए "पत्र : एस० श्रीनिवास आयंगारको", १९-५-१९२७ ।