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३६४. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको

नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण ५ [२१ मई, १९२७ ]

भाई घनश्यामदासजी,

दो दिनसे जमनालालजी यहाँ आ गये हैं। उन्होंने आपको संदेशा दिया है। जो कुछ मैंने आपसे लिखा है उससे ज्यादह लिखनेका कोई ख्याल नहीं आता। बाद- शाहकी मुलाकातके बारेमें मेरा अभिप्राय यह है कि उस मुलाकातकी आप कोशिश न करें। यदि हिंदी प्रधान या तो मुख्य प्रधान मुलाकात करानेके लिये चाहे तो उस बातका इनकार भी न करें। जब तक मुझे ज्ञान है मेरा ऐसा मंतव्य है कि बादशाहके पास कुछ राज्य प्रकरणकी बातें नहीं की जा सकती हैं। केवल क्षेत्र कुशलकी हि बात होती है। प्रधानोंको अवश्य मिलें। और उनके साथ जो कुछ भी दिल चाहे वह बात कर सकते हो। वहांकी जेलोंका सूक्ष्म निरीक्षण करें, और लंदनके गरीब प्रदेशमें किसी जानकार मनुष्यके साथ खूब भ्रमण करें और गरीबोंकी स्थितिका अवलोकन करें। शनिचरकी रात्रिको एक या दो बार गरीब और धनिक प्रदेशके शराबखानोंके नजदीक खड़े रहकर वहांकी भी चेष्टा देखें।

मेरा स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन अच्छा होता जाता है।

पूज्य मालवीयाजीको मैंने बहुत दिनोंके पहले खत लिखा। उसके उत्तरकी आशा नहीं रखता हूं। क्योंकि पत्रोंका उत्तर देना उनका स्वभाव नहीं है। तारोंका उत्तर तारसे अवश्य देते हैं। मैं तो दुबारा भी लिखनेवाला हूं ।

आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा ।

आपका,
मोहनदास

मूल (सी० डब्ल्यू० ६१४७) से ।

सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला