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३६८. पत्र : अब्बास तैयबजीको

नन्दी हिल्स
२२ मई, १९२७

प्रिय भुर्ररर और गर्वित पिता, यद्यपि यह स्नेह-पत्र है, तो भी मुझे बोलकर ही लिखवाना पड़ रहा है। यदि में बिस्तरपर पड़ा हुआ बोलकर लिखवाता हूँ, तो मुझे उससे अपनी शक्ति बनाये रखनेमें मदद मिलती है । बहरहाल मेरे स्वास्थ्यके बारेमें चिन्ताकी कोई बात नहीं है, क्योंकि मेरी सेहतमें बराबर सुधार हो रहा है। उस स्वास्थ्यको जिसे मैंने निमिष मात्रमें खो दिया, फिरसे पानेमें अभी कुछ समय लगेगा । खोये हुए स्वास्थ्यको शायद पूरी तरहसे न पाया जा सके, परन्तु डाक्टरोंका खयाल है कि वह बहुत कुछ तो फिर पूरी तरह सुधर सकता है ।

कृपया सोहेला और प्रोफेसर मुहम्मद हबीबको मेरी बधाई दें । यद्यपि में शारीरिक रूपसे आपके पास उपस्थित नहीं हो सकूँगा परन्तु मेरी आत्मा आपके पास होगी। मैं कामना करता हूँ कि दोनोंका जीवन सुखी रहे एवं देशसेवाके लिए उपयोगी हों । सोहेलाको यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि उसका विवाह इसलिए नहीं हो रहा है कि वह केवल एक गुड़िया बन जाये और देशके लिए उपयोगी न रहे । परन्तु उससे यह आशा की जायेगी कि वह उसी निष्ठासे देशकी सेवा करे जैसी निष्ठासे उसके पिता कर रहे हैं, जो बाल पक जानेपर भी युवा हैं, और जो प्रतिदिन युवा होते जा रहे हैं । यदि उसके पति इस सम्बन्धमें कहीं उदासीन हों, तो उन्हें भी वह अपनी आन्तरिक शक्तिसे प्रेरित करके इस सेवामें अपना साझेदार बनाये, क्योंकि उन्हें जीवनके सभी सुखों और दुःखोंमें साझेदार बनना है। मेरे यह कामना करनेसे कोई लाभ नहीं कि जीवनमें कभी कोई दुःख न हो, सुख ही सुख मिले। यह तो सुन्दर रंगोंकी विविधतासे विहीन जीवनका एक सपाट और फीका चित्र होगा। जीवनमें उल्लास तो होना चाहिए परन्तु बीच-बीचमें कभी-कभी दुःख भी आने चाहिए । इसलिए मेरी कामना एवं आशा है कि यदि ईश्वर उन्हें यह स्मरण दिलानेके लिए कि जीवनके उल्लासमय क्षणोंमें उसे अपना आपा नहीं भूलना है दुःखके घूंट देगा, तो जीवनमें पर्याप्त परिमाणमें उल्लास भी देगा ।

मुझे आश्चर्य हो रहा था कि आप क्या कर रहे हैं और रंगूनमें आप कैसे रहे । एक लम्बे अरसेसे आपने मुझे कोई पत्र नहीं डाला । मैं समझता हूँ कि यह सब बिस्तरपर पड़े मित्रकी शुभकामनाके लिए स्वेच्छापूर्वक किया गया है। रेहानाने भी आपका अनुसरण किया है। परन्तु आपको मालूम होना चाहिए कि न तो आपके और न रेहानाके ही पत्रसे मेरे स्वास्थ्यकी हानि होनेकी सम्भावना है।