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पत्र : देवेश्वर सिद्धान्तालंकारको

आँखोंमें धूल झोंकनेके लिए लिखा है। बहरहाल, इसका यह अर्थ नहीं कि मैं यह समझता हूँ कि हजरत मुहम्मदका जीवन पूर्णत: निर्दोष रहा है या यह कि 'कुरान ' अपने आपमें परिपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें सब दूसरे धार्मिक ग्रन्थोंकी तरह, जिनमें हमारे धर्मग्रन्थ भी शामिल हैं, कुछ एक अंश ऐसे हैं जिनके कारण कठिनाई होती है। परन्तु 'कुरान ' ' पढ़ते हुए जो कठिनाइयाँ दिखाई देती हैं, वे अन्य धर्म-ग्रन्थोंकी कठिनाइयोंसे अधिक नहीं हैं। में यह मानता हूँ कि ईसाई धर्म शान्तिका वर्म है; यह बात सर्वमान्य होनी चाहिए। परन्तु 'ओल्ड टेस्टामेंट' जो ईसाई धर्मका अंग है, वीभत्स रक्तपातके वृत्तान्तोंसे भरा है। और प्रारम्भिक ईसाई धर्मका इतिहास तो ऐसा है कि उसमें ईसाई मतावलम्बी किसी तरह भी विश्वास नहीं कर सकते ।

आप मुझसे कहते हैं कि मैं 'वेदों' में से 'कुरान' जैसे अंशोंके उद्धरण दूं। आपने दस्युओंका उल्लेख स्वयं स्वीकार किया है। आपने दस्युओंसे सम्बन्धित अंशोंका जो भाष्य किया है, वह बिलकुल ठीक हो सकता । परन्तु 'कुरान' के सहृदय भाष्यकार भी 'कुरान' में आये अंशोंकी व्याख्या इसी प्रकार करते हैं। दस्यु अपने आपको दुराचारी नहीं समझते।

प्रत्येक व्यक्ति अपने हर छोटे बड़े कार्योंका औचित्य सिद्ध करता है और जिन लोगोंके प्रति उसके मनमें विश्वास नहीं होता वह उनपर दुश्चरित्रताका आरोप लगाता है। जनरल डायर अपनी कार्यवाही के बारेमें निश्चित रूपमें ऐसा ही समझते थे कि यदि उन्होंने वैसा न किया होता, तो अंग्रेज पुरुष और स्त्रियोंका जीवन खतरेमें पड़ जाता। हम लोग जो इस बातको ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं, उसे नृशंसता और प्रतिशोधका कार्य मानते हैं। परन्तु जनरल डायरके दृष्टिकोणसे वह कार्रवाई ठीक थी। बहुतसे हिन्दू हृदयसे मानते हैं कि गायकी हत्या करनेपर उद्यत व्यक्तियोंका वध उचित है। वे अपने समर्थनमें वेद-शास्त्रोंका उल्लेख करेंगे। बहुतसे दूसरे हिन्दू भी उनके वधका औचित्य सिद्ध करेंगे। परन्तु वे विदेशी लोग, जो गायकी पवित्रताको स्वीकार नहीं करते, एक जानवरको बचाने के लिए मनुष्यकी हत्याको अति मूर्खतापूर्ण बताएँगे। गुरु नानकके वारेमें, जिन्होंने निश्चय ही 'कुरान' पढ़ा था, यह कहा जाता कि वे मक्का भी गये थे और इस्लाम धर्मके प्रति बहुत ऊँची आदरकी भावना लेकर वापस आये थे। कबीर और दादूने भी 'कुरान'का अध्ययन किया था। इसलिए मैं यह सोचनेके लिए बाध्य हूँ कि यह दिखानेका प्रयत्न करना कि 'कुरान' अनैतिक ग्रन्थ है और 'कुरान' के अनुयायी तो और भी ज्यादा अन्यायी हैं, एक अवांछनीय और निरर्थक कार्य है। मेरी समझमें ज्यादा अच्छा तरीका तो यह है कि इन ग्रन्थोंके उन अच्छे तथ्यों और सुन्दर स्थलोंको ढूंढ़नेकी चेष्टा की जानी चाहिए, जिनके कारण इन ग्रन्थोंपर विश्वास करनेवाले लोगोंके जीवन में परिवर्तन हो गया। इस्लाम और मुसलमानोंके सम्बन्धमें, भारतके इन बहुत-से मुसलमानोंके आचरणसे, जो इस्लाम और मुसलमानोंका सही प्रतिनिधित्व नहीं करते, अनुमान लगाना, और उस आचरणको 'कुरान' की शिक्षाओंपर मढ़नेकी कोशिश करना अनुचित ही नहीं, खतरनाक भी है। शान्तिके पक्षमें 'कुरान' की सामान्य प्रवृत्तिके समर्थनमें मुझे