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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी एक मुसलमान द्वारा किये गये अत्याचारका प्रत्याख्यान करने अथवा कुछ एक दुष्कृत्योंकी, जिन्हें मैं अपने सामने होता देख रहा हूँ, सफाई देनेकी आवश्यकता नहीं है। परन्तु 'कुरान' के प्रति मेरी उदार भावना मुझे मुसलमानोंके प्रति वही न्याय देनेकी सामर्थ्य प्रदान करती है, जो मैंने ऐसी दशामें अपने सहधर्मी हिन्दुओंको दिया होता । किसी एक धर्मको लेकर केवल उसे मात्र सत्य धर्म प्रमाणित करने और शेष सभी धर्मोको उखाड़नेकी अपेक्षा संसारके विभिन्न धर्मोके प्रति सहानुभूति रखना अधिक सहज कार्य है ।

मैंने आपके पत्रका विस्तार सहित उत्तर दिया है, क्योंकि मेरा विश्वास है कि आप सत्यकी खोज करनेवाले व्यक्ति हैं। यदि आप मुझसे कोई और भी स्पष्टीकरण चाहेंगे तो मैं प्रसन्नतापूर्वक दूंगा ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

देवेश्वर सिद्धान्तालंकार
नैनी ( उ० प्र०)

अंग्रेजी (एस० एन० १२३८३) की माइक्रोफिल्मसे ।

३७२. पत्र : नर्मदाको

नन्दी दुर्ग
वैशाख कृष्ण ६ [२२ मई, १९२७ ]

चि० नर्मदा,

तुम्हारा एक पत्र आया था । उसका उत्तर मैंने तुम्हारे स्कूलके पतेपर दिया था, क्योंकि मैं तुम्हारा पूरा नाम और पता नहीं जानता था । आशा है पत्र तुम्हें मिल गया होगा ।

मैं यह नहीं जानता था कि तुम्हारा विवाह इतनी जल्दी होनेवाला है। मुझे आशा है कि तुम अपना अध्ययन जारी रखोगी और देशसेवा सम्बन्धी जो उच्च विचार तुमने मुझे बताये थे तथा जिन्हें तुमने अपने पत्रमें भी व्यक्त किया है, उनपर दृढ़ रहोगी, एवं तुम्हारे पति भी तुम्हें उन विचारोंपर दृढ़ बना रहने देंगे। खादी और चरखा कभी मत छोड़ना...।[१]

मोहनदासके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ४७५५) की फोटो-नकलसे ।

सौजन्य : नाना धर्माधिकारी

  1. इसके आगेका अंश अस्पष्ट है ।