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३७४. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

नन्दी
मौनवार, वैशाख बदी ७ [ २३ मई, १९२७]

बहनो,

तुमने भण्डारके कामका बोझ उठानेकी जिम्मेदारी ली है, इसे मैं बहुत बड़ा कदम मानता हूँ। अब उस जिम्मेदारीको दृढ़तासे निभाना। सफल होने में ईश्वर तुम्हें सहायता देगा। ऐसे तो बहुतसे काम हैं जो तुम हाथमें ले सकती हो और आश्रमको सुशोभित कर सकती हो, मगर मुझे जल्दी नहीं है। तुम्हारी भावना शुद्ध है, इसलिए तुम धीरे-धीरे स्वतः बहुतसे काम करने लगोगी। फिलहाल तो भण्डारके प्रयोगको सफल बनानेका ध्यान रखना । भण्डारकी छोटीसे-छोटी बात जान लेना । बहीखाता रखना तो जरूर सीख लेना। यह बिलकुल न मानना कि यह काम कठिन है। बहीखाता लिखना और समझना बहुत आसान है। उसमें मुश्किल तो जोड़ लगानेकी है। अंक ठीक न आते हों और जोड़ लगानेकी आदत न हो तो जरूर परेशानी होती है। मगर जोड़ लगाना केवल अभ्याससे ही आता है। जिसे सादा जोड़, घटाना, गुणा, भाग न आता हो वह सीख ले। इस काममें मेहनत है, बाकी तो आसान है । लेकिन इतना करने की इच्छा हो तो फिर इसमें रस भी मिलने लगता है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६५०) की फोटो-नकलसे ।

३७५. पत्र : आश्रमके बच्चोंको

सोमवार, २३ मई, १९२७

ईश्वर पहला ब्रह्मचारी था यह बात बालने याद रखी है। मुझे तो यह विचार अत्यन्त सुन्दर लगा। पूर्ण ब्रह्मचारी तो पूर्ण रूपसे निर्विकार होगा । ईश्वरके सिवा कौन ऐसा है जो पूर्ण रूपसे निर्विकार हो ? लेकिन उसकी तरह निविकार बननेका प्रयत्न तो हमें भी करना है। और सभी शास्त्र पुकार-पुकार कर कहते हैं कि हम ऐसा कर सकते हैं। ऐसा बननेके मात्र प्रयत्नमें भी आनन्द ही आनन्द है । मेरा अनुभव है कि इस आनन्दका करोड़वाँ हिस्सा भी संसारके उन पदार्थोंमें नहीं है जो आनन्ददायी माने जाते हैं। और सैकड़ों योगियोंने अपने इसी प्रकारके अनुभवोंका वर्णन किया है। उनके इन अनुभवोंमें विश्वास रखकर तुम सब ब्रह्मचर्यका पालन करनेका यथाशक्ति प्रयत्न करना ।

[गुजराती से ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

सौजन्य : नारायण देसाई