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५. पत्र: मीराबहनको

दुबारा नहीं पढ़ा

बेतिया
२४ जनवरी १९२७

चि० मीरा,[१]

कांगड़ीसे तुम्हारी [भेजी] दिलचस्प पुस्तिका मिल गई। मैंने उसे पूरी रफ्तारसे भागती हुई मोटरमें पढ़ डाला। आराम बिलकुल नहीं मिल रहा है। लेकिन तुम्हारा यह खयाल ठीक है कि सारा ही दौरा स्फूर्तिदायक है। मेरे लिए चम्पारन पवित्र स्मृतियोंसे जुड़ा हुआ है। दरअसल चम्पारनने ही हिन्दुस्तानसे मेरा परिचय कराया। मुझे इन हजारों लोगोंके बालकों जैसे भोलेभाले चेहरोंको किसी अवर्णनीय आशासे चमकते हुए देखकर अपार हर्ष होता है। वे रुपया और पैसा एकदम दे देते हैं, परन्तु वे अपने आलस्यको, जो उनके स्वभावका भाग बन गया है आसानीसे नहीं छोड़ते। मगर ऐसा मालूम होता है कि अब तो वह भी छूटता जा रहा है।

तुलसी मेहर[२] मेरे साथ। तुम्हें मालूम ही होगा कि इस समय हम नेपालके बहुत नजदीक हैं। जिन जगहोंसे मैं गुजरता हूँ, उन्हें अपने नक्शेमें तुम्हें जरूर देख लेना चाहिए। तुलसी मेहर पहाड़पर जानेसे पहले तुमसे मिलनेके लिए बहुत उत्सुक हैं। लेकिन उनका खयाल है कि तुम दूर बहुत हो।

राजभवनमें इक्केपर जाना तुम्हारे लिए बिलकुल उपयुक्त ही था। तुमने मित्रोंके[३] प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा किया है।

तुम वहाँके नौजवानोंके साथ आसपासके जंगलोंमें तो घूमोगी ही। उन्होंने तुम्हें जरूर बता दिया होगा कि [गुरुकुलके लिए] वह स्थान श्रद्धानन्दजीने पसन्द किया था। गुरुकुलकी सारी कल्पना उन्हींकी थी।

आज हम बेतियामें हैं। यह वही जगह है जहाँ मैं लोगोंकी सेवा करते हुए अन्य स्थानोंकी अपेक्षा सबसे ज्यादा ठहरा था।

शायद तुम्हें मालूम होगा कि मैं तुम्हारे अधिकांश पत्र, आश्रमवासियोंको पढ़कर सुना देनेके लिए वहाँ भेज देता हूँ। वे बहुत ही सुन्दर होते हैं। जिन पत्रोंमें तुमने कन्या गुरुकुलके रवैयेकी आलोचना की है, वे मैंने नहीं भेजे हैं। वे मैंने फाड़ डाले हैं। गुरुकुलके संचालनके सम्बन्धमें तुम्हारा अन्तिम सुविचारित मत मैंने वहाँ भेज दिया है। मेरा मतलब उस पत्रसे है जिसका उद्धरण मैंने रामदेवजीको भेजा था। अगर

  1. मीराके इस पत्र और अन्य अंग्रेजी पत्रोंमें सम्बोधन देवनागरीमें है।
  2. नेपालके तुलसी मेहर जो साबरमतीमें मीराबद्दनके सबसे पहले पिंजाई- शिक्षक थे।
  3. मीराके बापूज लैटर्स टू मीरामें लिखा है “मैं दो मुसलमान मित्रोंके सम्बन्धमें गृह-सदस्यसे मिलने गई थी। इन लोगोंसे मेरा परिचय बर्लिनमें हुआ था; ये उस समय निर्वासित थे।”