पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/४३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम अपनेको बलिदान कर दें। यदि हम रागद्वेष रहित रहते हुए अपना बलिदान कर सकते हों तो हमें यह विश्वास होना चाहिए कि उसका परिणाम शुभ ही होगा ।

अपना लेख आप वापस मांगें तो मिल जाये, इसलिए अभी तो मैंने उसे सँभाल कर रखा है।

जवाब नहीं आया तो कुछ दिन राह देखने के बाद फाड़ दूंगा ।

मेरी तबीयत सुधर रही है।

बापूके आशीर्वाद

मामासाहब फड़के

अन्त्यज आश्रम

गोधरा

गुजराती (जी० एन० ३८१७) की फोटो-नकलसे ।

३७८. प्रार्थना'[१]

२४ मई, १९२७

हे प्रभु, हम जिसे शुद्ध भावसे धर्म मानते हों हमें उसका सम्पूर्ण रूपसे पालन करनेकी शक्ति दे। और उसका पालन करते हुए लोकनिन्दा, अपशब्द, मार-पीट मृत्यु और निर्धनता इत्यादि सभी संकटोंको धैर्य और प्रेमसे सहन करनेकी शक्ति भी दे ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

सौजन्य : नारायण देसाई

३७९. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको'

नन्दी हिल्स (मैसूर राज्य)
२५ मई, १९२७

प्रिय जवाहरलाल,

तुम्हारा पत्र जब मैं रोग-शय्यापर पड़ा था तब मिला था । उस समय मैं बहुत पत्र-व्यवहार नहीं कर सकता था । अभी मैं स्वास्थ्य लाभ कर रहा हूँ और काम हल्का ही कर पाता हूँ; मगर मेरी प्रगति बराबर जारी है।

अब तुम्हें वहाँ रहते काफी समय हो गया है, मगर मैं जानता हूँ कि तुमने समय बेकार नहीं गँवाया है। फिर भी मुझे आशा है कि जब तुम लौटोगे तबतक

  1. छगनलालको लिखे एक पत्र में गांधीजीने उन्हें प्रार्थनाके समय प्रतिदिन यह प्रार्थना करनेका आदेश दिया था।